Monday, September 9, 2013

मेरी सोच

 शब्द नहीं जानता ,पर इंसान को पहचानता हूँ ....उन भूखे लोगो के लिए मन में कुछ विचार है जिन्हें करना है .जिंदगी के दौड़ में वे शायद पीछे रह गए ....गीता और कुरआन से पहले उन्हें पढना चाहता हूँ.

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मै और भाग  नहीं सकता या फिर भागना चाहता ही नहीं ....कुछ ऐसा हुआ है, भागने की लालसा ख़त्म हो गयी ....चूहा दौड़ में अब मन नहीं रमता  .....या तो मै बहुत पीछे छुट गया या फिर मेरी सोच जमाने से आगे है .......कुछ भी हो चूहा दौड़, अब मन नहीं रमता ......

4 comments:

  1. चूहा दौड़ तो बहुत घातक है. आशा है आपका प्रयास सफल रहे. शुभकामनायें.

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  2. खुद की अपनी रफ़्तार होनी चाहिए ... वही ठीक रहती है जीवन में ...
    इंसानों को पढ़ना सबसे ज्यादा जरूरी है ...

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