Monday, March 18, 2013

कुछ प्रासंगिक सवाल -???




* मां-बाप का बेटों के प्रति अधिक मोह ही अक्सर उन्हें बेलगाम बनाता है!!

* एक सफल अर्थशास्त्री होने के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह अनर्थशास्त्री साबित हो 
 रहे हैं!!

* क्या सत्ता के शीर्ष स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के कारण भारत की साख कलंकित नहीं हुई है?

* पुरुलिया हथियार कांड के अभियुक्त किम डेवी को भी डेनमार्क ने भारत भेजने से इनकार कर दिया था और तब भारत सरकार कुछ नहीं कर पाई थी!!

* चुनाव के मौके पर विचारों और सिद्धांतों के खंभे अचानक हिल उठते हैं!!

*चुनाव में तो विदेश नीति तक बदल जाती है!!

* राजनेताओं का आम आदमी की मुश्किलों से कितना जुड़ाव है???




ये सभी सवाल मेरे जेहन में उठ रहे है ,जो प्रासंगिक होने के साथ साथ सामयिक भी है। 

Thursday, March 14, 2013

आनंद !!


पानी में कंकड़ डालना अच्छा है । आनंद भी आता है ।
इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही ।
पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना ।

Sunday, March 10, 2013

बजट में दूरदर्शिता की कमी


2013-14 का बजट उत्साहवर्धक नहीं है हालांकि यह पूरी तरह से चुनावी बजट भी नहीं है। बजट में बाजीगरी अधिक है एवं व्यापक दृष्टिकोण  का अभाव है। बजट के बहुत ही कम हिस्से में दीर्घकालिक विकास  की चिंता दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि  बिना किसी विशेष प्रयास और तैयारी के ही बजट को प्रस्तुत कर दिया गया। निर्भया  फंड की व्यवस्था कर दिल्ली गैंग रेप से उपजे आक्रोश को दबाने की नाकाम कोशिश की गयी है। इसमे दिखावा ज्यादा है वास्तविक धरातल पर काम करने का ज़ज्बा कम। मात्र 1000 करोड़ रुपये के फंड से महिलाओं की सुरक्षा कैसे की जा सकती है और फिर क्या  महिला सुरक्षा का मुद्दा केवल फंड या पैसे से ही सम्बंधित  है ? गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि  वास्तविक समस्या तो दूसरी है अतः समस्या की जड़ तक पहुँचना  ज्यादा जरुरी है। सबसे मुख्य बात इस फंड के पैसे का  भविष्य में उपयोग कैसे  किया जाता है ?

इसी तरह बजट में महिलाओं के लिए एक अलग बैंक स्थापित करने की घोषणा की गयी है। इस घोषणा से भी महिला आक्रोश को भुनाने की कोशिश की गयी है। यह वास्तविक धरातल पर कारगर कैसे होगा, इस विषय पर चिंतन की कमी झलकती है। इसकी रूपरेखा पर काफी काम करने की जरुरत है। निष्पक्ष तरीके से विश्लेषण किया जाय तो ऐसा लगता है कि इसकी  कोई जरुरत नहीं थी। उपलब्ध बैंकिंग संस्थाओं में ही सुधार कर महिलाओं की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है । महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढाने के लिए या उनको बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग बैंक बनाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसके लिए राजनितिक इच्छा शक्ति का  होना आवश्यक  है। ऐसा लगता है कि महिलाओं को कुछ देने के नाम पर सिर्फ बयानबाजी की गयी है। 97,000 करोड़ महिला विकास के लिए इस बजट में रखा गया है। देखते है, भविष्य में इसका कितना उपयोग हो पता है। कुल मिला कर बजट महिलाओं के साथ साथ आम आदमी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।
खाद्य सुरक्षा पर सरकार थोड़ी गंभीर दिख रही है। खाद्य सुरक्षा के लिए बजट में 10,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कुल आबादी का लगभग 67.5 प्रतिशत लोगों को इससे लाभ मिलने की बात की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र की 75प्रतिशत आबादी तथा शहरी क्षेत्र की 50 प्रतिशत आबादी इससे लाभान्वित होगी। इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है। परन्तु इसका हस्र वैसा नहीं होना चाहिए जैसा मनरेगा का हुआ। एक व्यापक रणनीति के साथ सभी मुद्दों का अवलोकन करने  के बाद ही इसे लागू किया जाना चाहिए। अन्यथा इसका लाभ वंचित वर्ग को नहीं मिलेगा। 2014 के आम चुनाव को ध्यान में रख कर सरकार अगर इसे जल्बाजी में लागू करती है तो फिर इससे भुखमरी की समस्या तो हल नहीं होगी उलटे यह योजना  भी सरकार के लिए एक बोझ बन जायेगी।
पूर्ण खाद्य सुरक्षा को हासिल करने के लिए कृषि में निवेश बढाने के साथ साथ वैज्ञानिक  तरीकों का भी प्रयोग करना होगा। द्वितीय हरित क्रान्ति खाद्य सुरक्षा की दिशा में सबसे कारगर साबित हो सकता है क्योंकि इसमे कार्बनिक खेती का प्रावधान है जो पर्यावरण हितैषी है। इसमे उन क्षेत्रों पर फोकस किया गया है जिन्हें प्रथम हरित क्रांति में अनदेखा कर दिया गया था। साथ ही इसमे सीमांत कृषकों पर भी पर भी फोकस किया गया है। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ खाद्यान्न वितरण एवं उसके भंडारण पर भी ध्यान देना होगा।अधिक पैदावार भी आज सरकार के लिए मुसीबत बन जाता है क्योंकि  भण्डारण गृह  के अभाव में उनका उचित रख रखाव नहीं हो पता और वे सड़ जाते है। कई बार सड़ा हुआ खाद्यान्न ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से  गरीबों  को खाने के लिए दे दिया जाता है।
फ्लैगशिप योजनाओं पर से सरकार का ध्यान कम हुआ है। इन योजनाओं के लिए बजट में आवंटन घट गया  है। वर्तमान में मंहगाई की दर 10.79 फीसदी है अतः इसे शामिल करने पर वास्तविक स्थिति का निर्धारण हो जाता है।  ऐसा लगता है कि सरकार का खाद्य सुरक्षा प्रेम फ्लैगशिप योजनाओं पर भारी पड़  रहा है। महाराष्ट्र में सुखा पड़ा है और बजट में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। प्रत्येक वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में सुखा का प्रकोप पड़ता ही है अतः इससे  निपटने के लिए दीर्घकालिक नीति की सख्त जरुरत है। ग्रामीण विकास मंत्रालय को 80 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है। यह पिछले साल के बजट के आवंटन से 5.1 प्रतिशत ज्यादा है। इसी प्रकार कृषि मंत्रालय को 27 हजार करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है।यह पिछले साल से 8.2 प्रतिशत ज्यादा है। अगर इन पैसों का सही इस्तेमाल किया जाता है तो कृषि एवं ग्रामीण विकास में काफी मदद मिलेगी।

बजट से सबसे ज्यादा निराश कर दाता  वर्ग हुआ है।वह एक बड़ी छुट की उम्मीद कर रहा था जबकि उसे मात्र दो हजार की राहत ही  मिल पायी है और यह सिर्फ उनके लिए है जिनकी वार्षिक आमदनी पांच लाख रुपये से कम है। बजट में बुजुर्गों की भी अनदेखी की गयी है। उन्हें कुछ नहीं दिया गया है। ऐसा ही हाल महिलाओं का भी है।मंहगाई की रोकथाम के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।वित् मंत्री जी के आशा व्यक्त करने से ही मंहगाई रुकने वाली नहीं है।खाद्य मुद्रास्फीति के तो बढ़ने के आसार दिख रहे है।एक्साइज ड्युटी  12 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है अतः रोजमर्रा के सामान के दाम भी नहीं घटने वाले।
बजट में सुरक्षा का ध्यान रखा गया है।वित् मंत्री ने आतंकवाद से निपटने के लिए नेट ग्रिड योजना और प्रोजेक्ट सीसीटीएन को पर्याप्त पैसा दिया है। एनआईए  की मजबूती के लिए अधिक धनराशि  का आवंटन किया गया है। यह एक अच्छा कदम है परन्तु आजकल के घोटालों के वातावरण में यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि  इनका इस्तेमाल समयबद्ध और सही तरीके से हो, नहीं तो इस आवंटन का कोई फायदा नहीं होने वाला।

बच्चों के विकास के लिए बजट में 77 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है। पांच करोड़ युवाओं को कामकाज का प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है।इसके  अतिरिक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पिछली बार की अपेक्षा अधिक धन का आवंटन हुआ है। ये सब बजट में शामिल सकारात्मक तत्व है। फिर भी बजट का अवलोकन करने पर यह प्रदर्शित होता है की बजट दूरगामी  प्रभाव नहीं छोड़ता क्योंकि इसमें दूरदर्शिता का अभाव है। बजट का भारतीयकरण होना बहुत जरुरी है। क्योंकि भारत की भौगोलिक ,सामजिक एवं आर्थिक स्थिति भिन्न प्रकार की है अतः इसकी आर्थिक  चुनौतियां भिन्न प्रकार की है। केवल विदेशों से आयातित योजनाओं को लागू कर देने से ही भारत का विकास नहीं हो सकता। सतत विकास के लिए देशी अर्थव्यवस्था की समझ होना अनिवार्य है।  भविष्य में बजट निर्मित करने से पहले व्यापक अनुसंधान एवं विचार विमर्श किया जाय। भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक समस्याओं को समझा जाय। अन्यथा बजट अपनी  प्रासंगिकता खो देगा।