Tuesday, October 22, 2013

गीता को हमलोग मजाक में प्रोफ़ेसर गीता शर्मा कहते थे.

13 दिसंबर 2000 का दिन... करीब तीन बजे हमारा ग्रुप बातचीत  करते हुए पन्त पार्क की ओर चल दिया। हम लोग स्नातक के द्वितीय वर्ष में थे। गोरखपुर विश्व विद्यालय में इस समय तक पीरियड ख़त्म हो जाते थे।  पन्त पार्क हमारी मटर गस्ती का एक महत्वपूर्ण ठिकाना था।  हमारी क्लास कला संकाय में चलती थी।  हमारे ग्रुप में 6  सदस्य थे।  उस दिन मौसम काफी सुहावना था।  इसलिए हमने तय किया की एक दो घंटे चर्चा करते है।  हमारे बीच चर्चा के विषयों में काफी विविधता होती थी।

पार्क में एक जगह सभी बैठ गए। शुरुआत हमेशा की तरह हमारे ग्रुप की सबसे तेज सदस्य गीता की तरफ से हुई।  गीता को हमलोग मजाक में प्रोफ़ेसर गीता शर्मा कहते थे।  गीता द्वारा किया गया पहला प्रश्न था।  जौनपुर में शर्की  राज्य की स्थापना किसने और कब की ?
हमें यह उम्मीद नहीं थी की प्रोफ़ेसर गीता अचानक ऐसा प्रश्न करेंगी।  लेकिन अब प्रश्न पर विचार करना जरुरी था।  पवन ने बताया की शार्की साम्राज्य की स्थापना फीरोज़ शाह तुगलक के एक अमीर  मलिक सरवर  द्वारा किया गया।  लेकिन उसे यह नहीं पता था कि इसकी स्थापना कब की गयी ?संयोग से मुझे पता था  मैंने तपाक से उतर दिया। … 1394 ई.में।

गीता द्वारा किया गया दूसरा प्रश्न था।  गुलबर्गा का एक स्वतंत्र  राज्य के रूप में स्थापना एवं यहाँ के वास्तु कला का विकास।  यह एक ऐसा प्रश्न था जिसका पूरा उतर शायद ही किसी को पता हो।  गुड्डू ने बताया - 1347 ई. में अलाउद्दीन बहमन के नेतृत्व में गुलबर्गा एक स्वतंत्र राज्य बना इसी के साथ दक्कन में वास्तुकला का विकास शरू हुआ।  नीना ने कहा - गुलबर्गा किले के अन्दर जो जमा मस्जिद है वह भिन्न तथा विशिष्ट है।  तभी मुझे अचानक याद आया की इस मस्जिद की  डिजायन  14 वीं सदी के महान शिल्पकार रफ़ी ने तैयार किया था।
आगे प्रश्न के उतर को गीता ने खुद पूरा किया -गुलबर्गा के जमा मस्जिद के बीच का खुला स्थान छोटे छोटे गुम्बदों से भरा पड़ा है जो मेहराब पर अवलम्बित और पास पास बने है।  संभवतः लीक से हट कर बनायीं मस्जिद का यह प्रारूप रुढ़िवादियों को पसंद नहीं आया।

इस प्रश्न को ग्रुप के सभी सदस्यों ने  सराहा और प्रश्न पूछने के लिए धन्यवाद भी दिया। अपनी तारीफ़ सुनकर गीता के होठों पर मुस्कान फ़ैल गयी।  एक बात और उसका चेहरा उस वक्त की चर्चित टेनिस खिलाड़ी मार्टिन हिंगिस से मिलता था। आगे की बातचीत फिर कभी ……

Monday, September 9, 2013

मेरी सोच

 शब्द नहीं जानता ,पर इंसान को पहचानता हूँ ....उन भूखे लोगो के लिए मन में कुछ विचार है जिन्हें करना है .जिंदगी के दौड़ में वे शायद पीछे रह गए ....गीता और कुरआन से पहले उन्हें पढना चाहता हूँ.

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मै और भाग  नहीं सकता या फिर भागना चाहता ही नहीं ....कुछ ऐसा हुआ है, भागने की लालसा ख़त्म हो गयी ....चूहा दौड़ में अब मन नहीं रमता  .....या तो मै बहुत पीछे छुट गया या फिर मेरी सोच जमाने से आगे है .......कुछ भी हो चूहा दौड़, अब मन नहीं रमता ......

Tuesday, August 6, 2013

अब मन नहीं करता जाने को अपने बथान में !!!

बचपन के दिन याद आ रहे है।  तब  बहुत ही छोटा था। । हमारे बथान में मिटटी के घर के अन्दर एक गौरैया ने घोसला  बना लिया था।  मै  उसे रोज देखता … उसे सिर्फ अपना समझता … ऐसा महसूस होता था की उसने मेरे बथान वाले घर को चुन कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है।  मै  और मेरा भाई उसके परिवार के लिए रोज कुछ अनाज के दाने वहां पर रख देते थे.….  उनका चहचहाना आज भी मेरे दिलों दिमाग में बसा हुआ है।  ज़माना कितना बदल गया आज गौरैया  इक्का दुक्का ही कहीं नज़र आ जाती है.आज तो गाँव जाने पर भी उन गौरैया का दर्शन दुर्लभ हो गया है।

अब चहचहाना  नहीं होता उनका  

वो मधुर आवाज़

 नहीं आती मेरे कान में 
यही बात है,
 अब मन नहीं करता 
जाने को अपने बथान में !!!

गाँव में पहले एक गाना भी सुनने  को मिल जाता था.….

“राम जी की चिरिया, रामजी का खेत।।
खाय ले चिरिया, भर-भर पेट।।

अब यह गाना कहीं भी सुनने  को नहीं मिलता।  सच!! कितना बदल गया सबकुछ …

एक अनुमान के अनुसार आज गौरैयों की ९० फीसदी आबादी ख़त्म हो गयी है। पक्षीविज्ञानी एवं वन्यप्राणी विशेषज्ञों का यह मानना है कि पक्के मकानों का बढ़ता चलन, लुप्त होते बाग-बगीचे, खेतों में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग तथा भोजन स्त्रोतों की उपलब्धता में कमी इत्यादि इनकी घटती आबादी के लिए जिम्मेवार हैं।
 गौरैया बहुत नाजुक होती है। अब हमारे घर में हरे पेड़-पौधे नहीं रहे। बिजली-टेलीफोन के तारों के फैले जाल में फंसकर घायल होने से उसे डर लगता है। हमारे मोबाइल फोन और इसके लिए लगे ऊंचे-ऊंचे टावरों से कुछ ऐसी तरंगे निकलती हैं, जो हमें तो नुकसान पहुंचाती ही है. उन्हें भी नुकसान पहुंचाती है। बच्चे पैदा करने की उनकी क्षमता घटाती है। उन्हें बीमार बनाती है। अब वह बिजली के मीटर बक्से की खाली जगह में भी घोसला नहीं बनाती। पहले वह कहीं भी थोड़ी ऊंची जगह देखकर घोसला बना दिया करती थी। अब शायद डरती है कि कोई उजाड़ न दे।

 यह नन्ही-सी चिड़िया सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में तेजी से दुर्लभ होती जा रही है। पिछले कुछ सालों में गौरैया की संख्या में बड़ी कमी देखी गई है। लगभग पूरे यूरोप में सामान्य रूप से दिखाई पड़ने वाली इन चिड़ियों की संख्या अब घट रही है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि नीदरलैंड (हॉलैंड) में इनकी घटती संख्या के कारण इन्हें रेड लिस्ट में रखा गया है। कमोबेश यही हालत ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चेक गणराज्य, बेल्जियम, इटली तथा फिनलैंड के शहरी इलाकों में दर्ज की गई है।

 संक्षेप में , आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं।पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि गौरैया के लापता होने के कई कारण हैं जिनमें मोबाइल के टावर प्रमुख हैं। मोबाइल टावर 900 से 1800 मैगाहर्टज की आवृति उसर्जित करते हैं जिससे निकलने वाली विद्युत चुंबकीय विकीरण से गौरैया का नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है इससे दिशा पहचानने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है आम तौर से 10 से 15 दिनों तक अण्डा सेने के बाद गौरैया के बच्चे निकल आते है लेकिन मोबाइल टावरों के पास 30 दिन सेने के बावजूद अण्डा नहीं फूटता।


इसका मूल स्थान एशिया-यूरोप का मध्य क्षेत्र माना जाता है। मानव के साथ रहने की आदी यह चिड़िया मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ विश्व के बाकी हिस्सों में जैसे उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड में भी पहुँच गई।इसकी खासियत है कि यह अपने को परिस्थिति के अनुरूप ढालकर अपना घोंसला, भोजन उनके अनुकूल बना लेती है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण यह विश्व में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली चहचहाती चिड़िया बन गई।

गौरैया अपना घोंसला बनाने के लिए साधारणतः वनों, मानव-निर्मित एकांत स्थानों या दरारों, पुराने मकानों का बरामदा, बगीचा इत्यादि की तलाश करती हैं। गौरैया अकसर अपना घर मानव आबादी के निकट ही बनाती हैं।

भारत के हिन्दीभाषी क्षेत्रों में यह गौरैया के नाम से लोकप्रिय है। तमिलनाडु तथा केरल में कूरूवी, तेलुगू में पिच्चूका, कन्नड़ में गुब्बाच्ची, गुजरात में चकली, मराठी में चिमानी, पंजाब में चिड़ी, जम्मू तथा कश्मीर में चेर, पश्चिम बंगाल में चराई पाखी, उडीसा में घरचटिया, उर्दू में चिड़िया तथा सिंधी में इसे झिरकी कहा जाता है।

 गौरैया को बचाने के लिए भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों ने मिल कर हर साल बीस मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाने की घोषणा की थी और 2010 में पहली बार ‘विश्व गौरैया दिवस’ मनाया गया। इसी क्रम में भारतीय डाक विभाग ने नौ जुलाई 2010 को गौरैया पर डाक टिकट जारी किए। कम होती गौरैया की संख्या को देखते हुए अक्तूबर 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया।

 यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है।आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में काफी  कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है।

देश के ग्रामीण क्षेत्र में गौरैया बचाओ अभियान के बारे जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो और समाचारपत्रों का उपयोग किया जा रहा है। कुछ संस्थाएं गौरैया के लिए घोंसले बनाने के लिए भी आगे आई हैं। इसके तहत हरे नारियल में छेद कर, अखबार से नमी सोख कर उस पर कूलर की सूखी घास लगा कर बच्चों को घोंसला बनाने का हुनर सिखाया जा रहा है।

सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद मोहम्मद ई दिलावर द्वारा शुरू की गई पहल पर ही आज बहुत से लोग गौरैया बचाने की कोशिशों में जुट रहे हैं। लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की जरूरत है क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं। कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है।

 गौरैया को फिर से बुलाने के लिए लोगों को अपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने चाहिए जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।मुझे याद है। ….   बचपन में  जानकारी के अभाव में हम ही ऐसा कर चुके है।

अब गौरैया को बचाने के लिए युद्ध स्तर  पर अभियान चलाये जाने की जरुरत है। इस कार्य में युवाओं को साथ लेकर समाज में गौरैया के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश होनी चाहिए।  गौरैया सिर्फ हमारे लिए एक चिड़िया नहीं है बल्कि  भारतीय संस्कृति की एक अमुल्य धरोहर है।  






Thursday, August 1, 2013

एक ज्वलंत प्रश्न !

दुष्कर्म और कुकर्म के खिलाफ
 सामूहिक आवाज कब उठेगी ?
 कृत्रिम मिथक अब टूट जाने चाहिए
 आखिर कबतक सताते रहेंगें !

क्या शारीरिक सौन्दर्य ही 
उसकी सबसे बड़ी पूंजी है ?
क्या वह सिर्फ और सिर्फ 
वस्तु  बनके रह गयी 
का हे की आधुनिकता !

शक्तिरूपा का केवल गुणगान 
अब नहीं करना 
व्यवहार में हस्ती का निर्माण 
कब होगा ?
समाज के सामने एक ज्वलंत प्रश्न !


Wednesday, July 31, 2013

तेलंगाना के गठन की घोषणा कर सरकार ने मधुमक्खी के छतें में हाथ डाल दिया है...

अंततः यूपीए की समन्वय समिति और कांग्रेस वर्किंग कमिटी की मंजूरी मिल जाने के बाद अलग तेलंगाना राज्य का बनना तय हो गया । यह देश का 29वां राज्य होगा।मेरा मानना है की यह फैसला देर से लिया गया और चुनावी माहौल में लिया गया.… सरकार की नज़र 2014 पर है।  काश! ऐसे फैसले प्रशासनिक आधार पर लिए जाते।  भारत की जनसँख्या जिस तरह से बढ़ी है इसके अपने फायदे या नुक्सान हो सकते है , पर इससे निश्चित रूप से प्रशासन की पहुँच आम आदमी तक कठिन हो गया है अतः सरकार को चाहिए की एक नए आयोग का निर्माण करे जो अन्य  नए राज्यों की संभावनाओं का आकलन कर सके।

सरकार ने मधुमक्खी के छतें में हाथ डाल दिया है। तेलंगाना के गठन की घोषणा होने के कुछ ही देर बाद गोरखालैंड के लिए गोरखा रीजनल अथॉरिटी के सीईओ बिमल गुरूंग ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के एक समर्थक ने गोरखालैंड के समर्थन में कलीमपोंग शहर के दंबरचौक में आत्मदाह की कोशिश की। तेलंगाना के गठन पर सहमति के बाद कई अन्य छोटे राज्यों के गठन की मांग ने जोर पकड़ लिया है। हरित प्रदेश, विदर्भ, पूर्वांचल, गोरखालैंड, बुंदेलखंड जैसे कई छोटे राज्यों की मांग सामने आने लगी है। क्या अब  छोटे राज्य बनाने की प्रक्रिया यहीं से शुरू हो जाएगी।

 नागपुर से कांग्रेस सांसद ने  अलग विदर्भ के लिए बकायदा सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिख दी है। मायावती ने तेलंगाना के गठन का स्वागत करते हुए यूपी को 4 हिस्सों में बांटने की वकालत कर डाली।तेलंगाना के गठन के साथ ही बोडोलैंड की मांग कर रहे नेताओं ने भी अपने विरोध प्रदर्शनों को और तेज करने की चेतावनी दी।

 तेलंगाना में 10 जिले शामिल किए गए हैं। हैदराबाद 10 वर्षों तक दोनों राज्यों की साझा राजधानी होगा। इसके बाद तटीय आंध्र के किसी हिस्से में आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाई जाएगी जबकि हैदराबाद तेलंगाना राज्य की ही राजधानी रहेगा।तटीय आंध्र, तेलंगाना से अलग होगा और यह रायलसीमा के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश बनेगा। कांग्रेस ने तेलंगाना को आंध्र प्रदेश के 23 में से 10 जिले देकर राज्य की तकरीबन आधी लोकसभा सीटें देने की कोशिश की है। विधानसभा की 294 सीटों में से प्रस्तावित तेलंगाना को 119 सीटें मिलने की संभावना है।

नए राज्य का नाम रायल-तेलंगाना हो सकता है। तेलंगाना में आदिलाबाद, निजामाबाद, करीमनगर, मेडक, वारंगल, खम्मम, रंगारेड्डी, नालगोंडा, महबूबनगर और हैदाराबाद जिलों के अलावा रायलसीमा के दो जिलों कुरनूल और अनंतपुर को भी जोड़ने का प्रस्ताव है।

तेलंगाना को 1956 में आंध्र प्रदेश में मिलाया गया था. तब से कई बार अलग तेलंगाना राज्य के लिए अभियान किया जा चुका है. साल 2000 में अलग तेलंगाना अभियान ने एक बार फिर जोर पकड़ा और तब से हैदराबाद समेत राज्य के कई हिस्सों में लगातार विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. संप्रग-1 सरकार के साझा न्यूनतम कार्यक्रम में और संसद के संयुक्त अधिवेशन (2004) में राष्ट्रपति के अभिभाषण में सर्वसम्मति से अलग तेलंगाना राज्य के गठन की बात कही गई थी। 9 दिसंबर 2009 को अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिए केंद्र सरकार ने रिपोर्ट माँगी थी. तब से कई बार इस मु्द्दे को लेकर कई बैठक हो चुकी हैं.

नए तेलंगाना राज्य के गठन में राज्य के गठन में छह महीने का वक्त लगेगा। संसद के इसी सत्र में तेलंगाना पर बिल लाया जा सकता है। इसके लिए संसद द्वारा राज्य पुनर्गठन विधेयक को साधारण बहुमत से पारित कराने सहित कई कदम उठाने होंगे। इस विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता नहीं होगी।आंध्र प्रदेश राज्य विधानसभा को भी अलग तेलंगाना राज्य के गठन को लेकर एक प्रस्ताव पारित करना होगा।

हैदराबाद तेलंगाना बनने के मध्य एक बड़ी बाधा रहा है। राज्य की अर्थव्यवस्था में हैदराबाद का  महत्व काफी अधिक है। हैदराबाद शहर और उसके पास के इलाके से राज्य के राजस्व का 55 प्रतिशत हिस्सा आता है यानी लगभग 40 हज़ार करोड़ रुपए. इसी तरह केंद्र सरकार को भी आंध्र प्रदेश से मिलने वाले राजस्व का 65 फीसदी हिस्सा यानी तकरीबन 35 हज़ार करोड़ रुपए इसी शहर से मिलता है। हैदराबाद से उत्पाद और सेवाओं का जो निर्यात विदेशों को होता है उसका मूल्य भी लगभग 90 हज़ार करोड़ रुपए का है जिसमें से सॉफ्टवेयर और आईटी सेवाओं का हिस्सा 60 हज़ार करोड़ रुपए का है और शेष भाग दवाओं के उद्योग और दूसरे क्षेत्रों से आता है.

तेलंगाना के लिए आन्दोलन कर रहे लोगों को  मेरी तरफ से बधाई। …. मुझे यह  उम्मीद है कि नए राज्य के गठन के बाद जो भी सरकार बनेगी, वह वहां के लोगो की भावनाओं को समझते हुए पिछड़ेपन को दूर करने का प्रयास करेगी और राजनितिक स्थिरता के लिए भी काम करेंगी। इसके  साथ ही  मुझे यह आशंका  है कि  अगर वहां पर झारखंड  की तरह अस्थिरता उत्पन्न होती है तो तेलंगाना के गठन के मकसद पूरा नहीं होगा। इस निर्णय की  सफलता की जिम्मेदारी हमारे माननीय राजनीतिज्ञों पर निर्भर करता है। साथ ही मुझे यह भी उम्मीद है कि  सरकार सही समय पर द्वितीय राज्य पुनर्निर्माण आयोग का गठन करेगी और अन्य  नए  राज्यों के गठन की  उचित मांगों पर विचार करेगी। हालांकि तेलंगाना के गठन की घोषणा में राजनीति ही दिख रही है।

Tuesday, July 30, 2013

ऐसे माहौल में कोई क्यों इमानदार बनेगा ?

 गौतम बुद्ध नगर की  एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को यूपी की अखिलेश सरकार ने सस्पेंड कर दिया। यूपी के सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक काम में लापरवाही के चलते कारवाई की गई है।  सरकार ने इस निलंबन पर सफाई दी है कि दुर्गा सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रखने में नाकाम रही हैं।लोगों का मानना है कि खनन माफिया के दबाव में यह कार्रवाई की गयी और यह गलत हुआ।इस निर्णय से सरकार की कार्य प्रणाली पर सवाल उठते है।ऐसा प्रतीत होता है की सरकारें  ऐसे लोगों की कठपुतली होती जा रही है जो अवैध कार्यों में लगे हुए है।

 नागपाल 2009 बैच की आईएएस ऑफिसर हैं। कुछ हफ्तों से ग्रेटर नोएडा में अवैध खनन पर लगाम कसने के लिए नागपाल युद्धस्तर पर काम कर रही थीं। उन्होंने यमुना नदी से रेत से भरी 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में किया था। नागपाल ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिए विशेष उड़न दस्तों का गठन किया था। नागपाल ने सस्पेंड होने से पहले ही कहा कि था इन माफियाओं पर कार्रवाई की वजह से धमकियां मिलती हैं।

कई स्थानों पर तो खनन माफियाओं की शक्ति इतनी बढ़ गयी है की वे सम्बंधित अधिकारियों को जान से मारने की धमकी देते रहते है और बंधक भी बना लेते है।  उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार को लोगों ने बहुमत देकर विधान सभा में भेजा और यह उम्मीद किया क़ि  अखिलेश यादव के नेतृत्व में इस बार एक ऐसी सरकार बनेगी जो पिछली सरकारों से अलग होगी लेकिन अभी तक इस सरकार ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिससे की लोगों को यह भरोसा  हो सके की यह सरकार दूसरी  सरकारों से अलग है।

उत्तर प्रदेश सरकार बीते डेढ़ साल में आधा दर्जन आईएएस अफसरों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई कर चुकी है. यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में जरूरी है कि मुख्यमंत्री अब अपनी कार्यप्रणाली बदलें. विपक्षी दलों के नेताओं और सेवानिवृत नौकरशाहों ने भी दुर्गाशक्ति के निलंबन को लेकर मुख्यमंत्री के फैसले पर कुछ ऐसे ही सवाल खड़े किए हैं.
 ईमानदार अफसर को इस तरह से अच्छा काम करने के एवज में हटाया जाएगा तो अफसरों में क्या सन्देश जाएगा?  दुर्गा नागपाल को सिविल सर्विसेज नियमावली के विपरीत हटाया गया है. किसी आईएएस अफसर को हटाने से पहले कम से कम उसकी कोई जांच करायी जानी चाहिए थी. इसके अलावा कम से कम डीएम से रिपोर्ट तो ली ही जानी चाहिए थी. बगैर डीएम की रिपोर्ट के ही उन्हें हटा दिया गया.

दुर्गा शक्ति का दोष इतना बड़ा नहीं था की उन्हें इसके लिए निलंबित किया जाय।  इससे जो लोग निर्भय होकर काम करना चाहते है उन्हें निराशा होगी और वे हतोत्साहित होगें।  बच्चों को किताबों में पढाया जाता है की इमानदार बनो , ऐसी घटनाओं से वे क्यों इमानदार बनाने की कोशिश करेंगें या और कोई भी क्यों इमानदार बनेगा जब सरकार ही माफियाओं के आगे घुटने टेक कर इमानदार लोगों को सजा दे रही हो।

Sunday, July 28, 2013

तेज़ाब को गुड बाय कहना ही होगा

आजकल की घटनाएं परेशान करती है …. लगातार कई लड़कियों पर तेज़ाब फेंक पर उनके जीवन को नर्क बनाया जा रहा है …. ऐसे लोग हमारे समाज को कलंकित कर रहे है … सरकार ने तेज़ाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने का फैसला लिया है …यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन सिर्फ इतने भर से तेज़ाब फेंकने की घटना पर अंकुश नहीं लगने वाला … जो भी व्यक्ति ऐसा करता है उसके खिलाफ ऐसी करवाई होनी चाहिए जिससे की वह दुबारा हिम्मत न कर सके. साथ ही तेज़ाब के विकल्प पर ध्यान देना चाहिए . जिन लड़कियों पर तेज़ाब फेंका जाता है , उनका जीवन नारकीय हो जाता है…वे सामान्य जीवन नहीं जी पाती . समाज और सरकार को उनके प्रति उदारता दिखानी होगी .
बाथरूम साफ करने के लिए तो टॉयलेट क्लीनर के नाम पर तेज़ाब 20-25 रुपए में ही मिल जाता है. दुकानों में हर किसी के लिए तेज़ाब की आसान उपलब्धि बंद हो ताकि उसकी तरह किसी और लड़की को अपनी ज़िंदगी यूँ न गुज़रानी पड़े- बिना आँखों के और पूरी तरह खराब हो चुके चेहरे के साथ.सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले निर्देश भी दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की बैठक बुलाई जाए ताकि तेज़ाब की बिक्री को रेगुलेट किया जा सके.
 केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नियमों का जो मसौदा रखा, उसमें बताया गया है फ़ोटो पहचान पत्र और निवास प्रमाण के बिना तेज़ाब नहीं ख़रीदा जा सकेगा. यही नहीं, तेज़ाब की बिक्री के लिए दुकानदार को भी लाइसेंस लेना होगा.केंद्र सरकार ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा है कि अब
क्लिक करेंतेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखा जाएगा.

 पॉइजन पजेशंस एंड सेल रूल्स में तेज़ाब को ज़हर की श्रेणी में रखने की बात कही गई है। इसे बेचने के लिए लाइसेंस लेना होगा और बिना फोटो पहचान पत्र लिए यह किसी को बेचा नहीं जाएगा। तेज़ाब खरीदने वाले को अपनी पहचान के अलावा खरीदने की वजह भी बतानी होगी। 18 साल से कम उम्र वालों को तेज़ाब नहीं बेचने का प्रावधान किया गया है। अभी टॉयलेट क्लीनर के नाम पर कोई भी व्यक्ति तेज़ाब खरीद सकता है।
तेज़ाब हमले की शिकार हुई दिल्ली की लक्ष्मी ने 2006 में खुले बाजार में तेज़ाब की बिक्री पर मुकमल पाबंदी लगाने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार अभी सिर्फ गाइडलाइन का ड्राफ्ट  लेकर आई है। जब तक पॉलिसी बनेगी, तब तक देर हो जाएगी।

 वर्ष 2005 में एक युवक का प्रेम-प्रस्ताव देने के कारण दिल्ली की सोलह वर्षीया लक्ष्मी पर तीन युवकों ने तेज़ाब फेंक दिया। जिससे उसकी आंखें, नाक, कान, व गर्दन जल गए। हाथों पर गहरे जख्म हो गए। चेहरा इतना विकृत हो गया कि जब वह अपने घर लौटी तो वहां के सारे शीशे हटा दिए गए थे। उसकी सारी तस्वीरें भी हटा दी गई थी।

महिलाओं पर तेजाबी हमले के ऐसे कई उदाहरण हैं। हालांकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से ऐसे मामलों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं मिल पाता क्योंकि ये मामले धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 320 (गम्भीर चोट पहुंचाना) और धारा 326 (घातक हथियारों से जान-बूझकर प्रहार करके चोट पहुंचाने) के तहत दर्ज किए जाते हैं। तथापि कैम्पेन एण्ड स्ट्रगल अगेंस्ट एसिड अटैक्स ऑन विमेन' की एक रपट के अनुसार, सिर्फ कर्नाटक राज्य में ही 1999 से 2007 अर्थात, 9 वर्षों में ऐसे 56 मामले दर्ज किए गए। अनुमान है कि भारत में प्रति वर्ष तेजाबी हमले की 1000 घटनाएं घटती हैं पर रपट 100-150 की ही दर्ज हो पाती है। 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग की 80 प्रतिशत महिलाएं विवाह और प्रेम प्रस्ताव को नकारने के कारण ऐसे हमले का शिकार होती हैं।

एसिड अटैक न सिर्फ किसी महिला के चेहरे को खराब कर देता है या उसकी आँखों की रोशनी छीन लेता है लेकिन उसे समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है.जिस्म पर लगे घाव तो सबको दिखते हैं लेकिन ज़हन पर लगे घाव किसी को नज़र नहीं आते. आत्मनिर्भर और ज़िंदादिली से भरपूर एक औरत देखते ही देखते असहाय, दूसरों पर आश्रित महिला बन जाती है.  तेजाब के भयंकर दुष्प्रभावों को देखते हुए भी इसे हथियारों की तरह घातक माना ही नहीं गया है। जबकि दुकानों में दस-बीस रुपयों में खुले आम मिल जाने वाला तेजाब हथियार से भी अधिक घातक है। तेजाबी हमले से पीड़ित को आरंभिक दो-तीन बड़े ऑपरेशानों के बाद भी कई बाद 25-30 ऑपरेशन कराने पड़ सकते हैं, जिसका खर्च हर बार तीन लाख रुपये तक आता है। फिर भी, संक्रमण का ख़तरा सदैव बना रहता है क्योंकि हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड मनुष्य की त्वचा के साथ हड्डियों को भी गला देती है.

 वर्ष 2007 में नोएडा के एक सत्रह वर्षीय किशोरी पर पड़ोसी ने तेजाब से प्रहार किया। मैसूर में एक 22 वर्षीया गृहिणी को उसके पति ने सल्फ्यूरिक एसिड मिश्रित शराब पीने के लिए मजबूर किया और दिल्ली की एक फैशन डिज़ाइनर को ऐसे प्रहार का सामना करना पड़ा। उक्त तीनों महिलाएं जीवन की भयावहता से जूझने के लिए विवश कर दी गई। तब उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं पर तेज़ाब प्रहार को हत्या से बदतर बताते हुए उनसे निपटने के लिए कठोर कानून की मांग की थी।

  भारत में भी पिछले एक दशक में तेज़ाब हमलों में वृद्धि हुई है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं.कागज़ पर नीति तय होने, उसके कानून बनने और इसे कड़ाई से लागू होने के बीच लंबा समय लग जाता है. आज़ादी के बाद 60 सालों में इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार ही नहीं हुआ.

एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया के करीब 23 देशों में हाल के वर्षों में एसिड हमलों की घटनाएँ हुईं. इनमें अमरीका, ब्रिटेन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के भी नाम हैं. लेकिन ये इन देशों में दूसरी जगहों की अपेक्षा हमलों की संख्या बेहद कम है. महिलाओं पर एसिड हमलों की सबसे अधिक घटनाएँ भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश के अलावा कंबोडिया में दर्ज की गई हैं.ईरान में 2004 में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर एक लड़के ने तेज़ाब फेंक दिया था जबकि कंबोडिया में 23 की विवियाना पर एसिड अटैक में उनका चेहरा, हाथ और छाती जल गई थी.

 तेज़ाब हमले के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश है। वर्ष 1967 में बांग्लादेश में, 1982 में भारत में और 1993 में कम्बोडिया में तेज़ाब हमले की पहली घटनाएं घटी। यह सिलसिला कमोबेश निरन्तर जारी है। सरकार ने महिला हिंसा उन्मूलन हेतु प्रतिबध्दता तो दर्शायी, कानून भी बनाये लेकिन यह एक पहलू छूट गया। बाद में भी इस पर ध्यान  नहीं दिया गया। जबकि तेजाब के प्रहार से पीड़ित महिलाओं का पुनर्वास भी आसान नहीं है क्योंकि प्लास्टिक सर्जरी, त्वचा प्रत्यारोपण या पुन: त्वचा उगाना न केवल बहुत महंगा है बल्कि इसमें सफलता की संभावनाएं भी क्षीण हैं।

तेजाब की खुली बिक्री रोकने को लेकर सात साल से चल रहे केस में सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2013 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने तेजाब की खुली बिक्री पर प्रतिबंध और पीडि़त को तत्काल आर्थिक सहायता देने के आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में तेज़ाब बेचने और खरीदने से जुड़े सभी नियम-कायदे गुरुवार से ही लागू कर दिए। अदालत ने कहा कि यदि बिना पहचान-पत्र देखे तेज़ाब बिका तो पॉइज़न एक्ट 1919 के तहत केस चलेगा। सजा होगी। अब खुले बाजार में वही तेज़ाब बेचा जाएगा, जो त्वचा पर बेअसर हो। जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस फकीर मोहम्‍मद की बेंच ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे तेज़ाब हमों को गैर-जमानती अपराध बनाएं। कोर्ट ने सरकारों को तीन महीने के भीतर इस बारे में पॉलिसी लाने के निर्देश दिए।

तेजाब का असर-

हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड इंसान की त्वचा के साथ हड्डियां तक गला देती हैं। यानी पीडि़त के लिए दर्दनाक और देखने वालों के लिए असहनीय।

ज्यादातर मामलों में पीडि़त की आंख हमेशा के लिए खराब हो जाती है। इसके अलावा सांस के जरिए तेज़ाब फेफड़ों तक पहुंच गया, तो यह जानलेवा हो जाता है। जैसा, कि दो माह पूर्व मुंबई में प्रीति राठी के मामले में हुआ।

2-3 शुरुआती बड़ी सर्जरी के बाद कई सेकंडरी सर्जरी करनी पड़ती है। कई बार 30-30 सर्जरी भी। हर सर्जरी का खर्च 1-3 लाख रुपए।

लेकिन 3-4 साल भी इन्फेक्शन का खतरा है। झुलसी हुई त्वचा बाकी शरीर में इन्फेक्शन फैलाती है। जले हुए हिस्से पर त्वचा बनने से गठान उभर आती है।

कई बार घावों पर नारियल तेल लगा दिया गया। कंबंल लपेट दिया गया। जिसने उनके ठीक होने की संभावना पूरी तरह खत्म कर दी।

बर्न के आसपास डेड टिशू में इंफेक्शन फैलता है और यही घाव भरने नहीं देता। इंफेक्शन हादसे के महीनों बाद भी हो सकता है।
 तेज़ाब कोई हथियार तो नहीं पर किसी की ज़िंदगी हमेशा के लिए बर्बाद करने या किसी की जान लेने के लिए काफी होता है.

चिकित्सा क्षेत्र में तमाम प्रगति के बावजूद तेज़ाब से प्रभावित चेहरे को फिर से उसके मौलिक स्वरुप में नहीं लाया जा सकता . मेरा तो यह मानना है की ऐसी घटनाएं हमारे समाज को विकृत कर रही है और महिलाओं में खौफ पैदा कर रही है . भारत को हमेशा यह गर्व रहा है की भारतीय संस्कृति  ने महिलाओं को देवी का दर्जा दिया है और महिलाओं का स्थान काफी उंचा माना जाता रहा है …. जब ऐसी घटनाएं होती है तो संस्कृति के पहरेदारों को सामने आना चाहिए और इसका पुरजोर तरीके विरोध करना चाहिए …बल्कि पुरे समाज को इसके खिलाफ खड़ा होना चाहिए . 

Sunday, July 21, 2013

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...

वाराणसी जिन दो नदियों वरुणा और असी से मिलकर बना था, उसमें एक नदी असी विलुप्त हो चुकी है ....


तराई की छोटी नदियां चीनी मिलों और उद्योगों के जहरीले कचरे का नाला बन गई हैं।


गोरखपुर की आमी नदी कभी अमृत जैसा पानी लोगों को देती थी, लेकिन अभी इसका पानी जहरीला हो चुका है...


हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...


आजादी के 66 साल बाद भी कश्मीरी अवाम का बाकी देश से वैसा संबंध कायम नहीं हो पाया है जो एक देश के नागरिकों में होता है।

114 साल पहले कश्मीर के पूर्व शासक महाराजा प्रताप सिंह ने वहां रेल चलाने की सोची थी।


विवाह 'लिव-इन' में रहने वाली स्त्री की भी पैतृक संपत्ति में कोई दावेदारी नहीं मानी जाती।

आधुनिक जीवन के साथ पुरुष समाज में नई चीजों के साथ समझौता करने की प्रवृत्ति पैदा हुई है।


पारंपरिक ईरानी मानते हैं कि कुत्ते नाजी होते हैं, उन्हें पालना ठीक नहीं है..


जब तक चिड़ियों के लिए संवेदना नहीं होगी तब तक उन्हें बचाने का कोई भी अभियान सफल नहीं होगा।

शहरों में जिस तरह से ऊंची इमारतें बन रही हैं वह गौरैयों के लिए घातक है।

कीटनाशकों के छिड़काव ने भी कई पक्षियों के लिए समस्याएं पैदा की हैं।

हम अपने अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा कर रहे हैं...

Monday, June 17, 2013

पत्रकारिता के लोकतांत्रिक पक्ष का क्षरण होता जा रहा है ...

आज पत्रकारों की बाढ़ आ गयी है .हर कोई अपनी पत्रकारिता के झंडे गाड़ना चाहता है .केवल ख्यालों में ही .अच्छे पत्रकार बनने के लिए काफी समर्पण की जरुरत होती है और उसके लिए गहन अध्ययन करना होता है .अपने विचारों को बिना किसी दबाव के रखना होता है और किसी भी मुद्दे पर संतुलित होकर अपने विचार रखने पड़ते है .समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी पड़ती है . एक पत्रकार दबाव समूह के अंग के रूप में काम करता है जो जनता की परेशानियों को सरकार के समक्ष जोरदार तरीके से रखता है .

आज तो ये गुण विरले ही मिलते है . सबको पैसा बनाने की जल्दी है . उनके पास तर्क भी है की अगर हम थोड़े भी ढीले हुए तो पीछे छुट जायेंगें और फिर दुबारा मौका नहीं मिलेगा .आखिर आजाद भारत में सबको पैसा बनाने की आजादी हासिल है तो हम क्यों पीछे खड़े रहे ?पैसे लेकर खबर छापना ,किसी ख़ास व्यक्तित्व की तरफदारी करना अधिकाँश पत्रकारों की पहचान बनती जा रही है .जानकारी भले ही न हो सनसनी बनाना तो सबको आता है .कारपोरेट घरानों की गोद में बैठकर खेलने में सोने चांदी के सिक्के बरसते है .सिक्के तो पाकर ये थोड़ी सी सुख सुविधा हासिल जरुर कर लेते है पर अपने पेशें को बेच डालते है .कोई कुछ नहीं कर सकता ,इनकी अपनी जिंदगी है ,जैसे चाहे जिए ...दुःख तो इस बात का है की पत्रकारिता के लोकतांत्रिक पक्ष का क्षरण होता जा रहा है .

Friday, April 5, 2013

दुनिया को कामसूत्र का ज्ञान देने वाला देश खुद अपने सेक्स से जुड़े मसलों को लेकर इतना असहाय हो गया!!!

महापुरुषों की मूर्तियाँ लगवाकर उनको भूल जाना और महान विचारों को किताबों तक सीमित कर देना हमारा पुराना शगल है!!!

महिला सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी छवि धूमिल ही हुई है।

16 दिसंबर 2012 कि उस स्याह रात का घटाटोप अंधेरा 2013 में भी कायम है!!!

दुनिया को कामसूत्र का ज्ञान देने वाला देश खुद अपने सेक्स से जुड़े मसलों को लेकर इतना असहाय हो गया!!!

भारत कई विरोधाभासों से भरा देश है!!!

Monday, March 18, 2013

कुछ प्रासंगिक सवाल -???




* मां-बाप का बेटों के प्रति अधिक मोह ही अक्सर उन्हें बेलगाम बनाता है!!

* एक सफल अर्थशास्त्री होने के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह अनर्थशास्त्री साबित हो 
 रहे हैं!!

* क्या सत्ता के शीर्ष स्तर पर फैले भ्रष्टाचार के कारण भारत की साख कलंकित नहीं हुई है?

* पुरुलिया हथियार कांड के अभियुक्त किम डेवी को भी डेनमार्क ने भारत भेजने से इनकार कर दिया था और तब भारत सरकार कुछ नहीं कर पाई थी!!

* चुनाव के मौके पर विचारों और सिद्धांतों के खंभे अचानक हिल उठते हैं!!

*चुनाव में तो विदेश नीति तक बदल जाती है!!

* राजनेताओं का आम आदमी की मुश्किलों से कितना जुड़ाव है???




ये सभी सवाल मेरे जेहन में उठ रहे है ,जो प्रासंगिक होने के साथ साथ सामयिक भी है। 

Thursday, March 14, 2013

आनंद !!


पानी में कंकड़ डालना अच्छा है । आनंद भी आता है ।
इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही ।
पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना ।

Sunday, March 10, 2013

बजट में दूरदर्शिता की कमी


2013-14 का बजट उत्साहवर्धक नहीं है हालांकि यह पूरी तरह से चुनावी बजट भी नहीं है। बजट में बाजीगरी अधिक है एवं व्यापक दृष्टिकोण  का अभाव है। बजट के बहुत ही कम हिस्से में दीर्घकालिक विकास  की चिंता दिखाई देती है। ऐसा लगता है कि  बिना किसी विशेष प्रयास और तैयारी के ही बजट को प्रस्तुत कर दिया गया। निर्भया  फंड की व्यवस्था कर दिल्ली गैंग रेप से उपजे आक्रोश को दबाने की नाकाम कोशिश की गयी है। इसमे दिखावा ज्यादा है वास्तविक धरातल पर काम करने का ज़ज्बा कम। मात्र 1000 करोड़ रुपये के फंड से महिलाओं की सुरक्षा कैसे की जा सकती है और फिर क्या  महिला सुरक्षा का मुद्दा केवल फंड या पैसे से ही सम्बंधित  है ? गहराई से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि  वास्तविक समस्या तो दूसरी है अतः समस्या की जड़ तक पहुँचना  ज्यादा जरुरी है। सबसे मुख्य बात इस फंड के पैसे का  भविष्य में उपयोग कैसे  किया जाता है ?

इसी तरह बजट में महिलाओं के लिए एक अलग बैंक स्थापित करने की घोषणा की गयी है। इस घोषणा से भी महिला आक्रोश को भुनाने की कोशिश की गयी है। यह वास्तविक धरातल पर कारगर कैसे होगा, इस विषय पर चिंतन की कमी झलकती है। इसकी रूपरेखा पर काफी काम करने की जरुरत है। निष्पक्ष तरीके से विश्लेषण किया जाय तो ऐसा लगता है कि इसकी  कोई जरुरत नहीं थी। उपलब्ध बैंकिंग संस्थाओं में ही सुधार कर महिलाओं की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है । महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढाने के लिए या उनको बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग बैंक बनाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसके लिए राजनितिक इच्छा शक्ति का  होना आवश्यक  है। ऐसा लगता है कि महिलाओं को कुछ देने के नाम पर सिर्फ बयानबाजी की गयी है। 97,000 करोड़ महिला विकास के लिए इस बजट में रखा गया है। देखते है, भविष्य में इसका कितना उपयोग हो पता है। कुल मिला कर बजट महिलाओं के साथ साथ आम आदमी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।
खाद्य सुरक्षा पर सरकार थोड़ी गंभीर दिख रही है। खाद्य सुरक्षा के लिए बजट में 10,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। कुल आबादी का लगभग 67.5 प्रतिशत लोगों को इससे लाभ मिलने की बात की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र की 75प्रतिशत आबादी तथा शहरी क्षेत्र की 50 प्रतिशत आबादी इससे लाभान्वित होगी। इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है। परन्तु इसका हस्र वैसा नहीं होना चाहिए जैसा मनरेगा का हुआ। एक व्यापक रणनीति के साथ सभी मुद्दों का अवलोकन करने  के बाद ही इसे लागू किया जाना चाहिए। अन्यथा इसका लाभ वंचित वर्ग को नहीं मिलेगा। 2014 के आम चुनाव को ध्यान में रख कर सरकार अगर इसे जल्बाजी में लागू करती है तो फिर इससे भुखमरी की समस्या तो हल नहीं होगी उलटे यह योजना  भी सरकार के लिए एक बोझ बन जायेगी।
पूर्ण खाद्य सुरक्षा को हासिल करने के लिए कृषि में निवेश बढाने के साथ साथ वैज्ञानिक  तरीकों का भी प्रयोग करना होगा। द्वितीय हरित क्रान्ति खाद्य सुरक्षा की दिशा में सबसे कारगर साबित हो सकता है क्योंकि इसमे कार्बनिक खेती का प्रावधान है जो पर्यावरण हितैषी है। इसमे उन क्षेत्रों पर फोकस किया गया है जिन्हें प्रथम हरित क्रांति में अनदेखा कर दिया गया था। साथ ही इसमे सीमांत कृषकों पर भी पर भी फोकस किया गया है। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ खाद्यान्न वितरण एवं उसके भंडारण पर भी ध्यान देना होगा।अधिक पैदावार भी आज सरकार के लिए मुसीबत बन जाता है क्योंकि  भण्डारण गृह  के अभाव में उनका उचित रख रखाव नहीं हो पता और वे सड़ जाते है। कई बार सड़ा हुआ खाद्यान्न ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से  गरीबों  को खाने के लिए दे दिया जाता है।
फ्लैगशिप योजनाओं पर से सरकार का ध्यान कम हुआ है। इन योजनाओं के लिए बजट में आवंटन घट गया  है। वर्तमान में मंहगाई की दर 10.79 फीसदी है अतः इसे शामिल करने पर वास्तविक स्थिति का निर्धारण हो जाता है।  ऐसा लगता है कि सरकार का खाद्य सुरक्षा प्रेम फ्लैगशिप योजनाओं पर भारी पड़  रहा है। महाराष्ट्र में सुखा पड़ा है और बजट में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। प्रत्येक वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में सुखा का प्रकोप पड़ता ही है अतः इससे  निपटने के लिए दीर्घकालिक नीति की सख्त जरुरत है। ग्रामीण विकास मंत्रालय को 80 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है। यह पिछले साल के बजट के आवंटन से 5.1 प्रतिशत ज्यादा है। इसी प्रकार कृषि मंत्रालय को 27 हजार करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है।यह पिछले साल से 8.2 प्रतिशत ज्यादा है। अगर इन पैसों का सही इस्तेमाल किया जाता है तो कृषि एवं ग्रामीण विकास में काफी मदद मिलेगी।

बजट से सबसे ज्यादा निराश कर दाता  वर्ग हुआ है।वह एक बड़ी छुट की उम्मीद कर रहा था जबकि उसे मात्र दो हजार की राहत ही  मिल पायी है और यह सिर्फ उनके लिए है जिनकी वार्षिक आमदनी पांच लाख रुपये से कम है। बजट में बुजुर्गों की भी अनदेखी की गयी है। उन्हें कुछ नहीं दिया गया है। ऐसा ही हाल महिलाओं का भी है।मंहगाई की रोकथाम के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।वित् मंत्री जी के आशा व्यक्त करने से ही मंहगाई रुकने वाली नहीं है।खाद्य मुद्रास्फीति के तो बढ़ने के आसार दिख रहे है।एक्साइज ड्युटी  12 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है अतः रोजमर्रा के सामान के दाम भी नहीं घटने वाले।
बजट में सुरक्षा का ध्यान रखा गया है।वित् मंत्री ने आतंकवाद से निपटने के लिए नेट ग्रिड योजना और प्रोजेक्ट सीसीटीएन को पर्याप्त पैसा दिया है। एनआईए  की मजबूती के लिए अधिक धनराशि  का आवंटन किया गया है। यह एक अच्छा कदम है परन्तु आजकल के घोटालों के वातावरण में यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि  इनका इस्तेमाल समयबद्ध और सही तरीके से हो, नहीं तो इस आवंटन का कोई फायदा नहीं होने वाला।

बच्चों के विकास के लिए बजट में 77 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी है। पांच करोड़ युवाओं को कामकाज का प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा गया है।इसके  अतिरिक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी पिछली बार की अपेक्षा अधिक धन का आवंटन हुआ है। ये सब बजट में शामिल सकारात्मक तत्व है। फिर भी बजट का अवलोकन करने पर यह प्रदर्शित होता है की बजट दूरगामी  प्रभाव नहीं छोड़ता क्योंकि इसमें दूरदर्शिता का अभाव है। बजट का भारतीयकरण होना बहुत जरुरी है। क्योंकि भारत की भौगोलिक ,सामजिक एवं आर्थिक स्थिति भिन्न प्रकार की है अतः इसकी आर्थिक  चुनौतियां भिन्न प्रकार की है। केवल विदेशों से आयातित योजनाओं को लागू कर देने से ही भारत का विकास नहीं हो सकता। सतत विकास के लिए देशी अर्थव्यवस्था की समझ होना अनिवार्य है।  भविष्य में बजट निर्मित करने से पहले व्यापक अनुसंधान एवं विचार विमर्श किया जाय। भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक समस्याओं को समझा जाय। अन्यथा बजट अपनी  प्रासंगिकता खो देगा।

Friday, February 22, 2013

कोई गम क्यों नही ?


इन्तजार करना नही
अनुसरण का स्वभाव नही
कोई गिला शिकवा नही
कोई वादा भी नही
उपहास करना आदत नही
और सुनना भी नही
बहुत निराशा भी नही
ज्यादा आस भी नही
तब क्यों कुछ ठीक नही ?

बोझिल मन और भारी कदम है
लगता दिल में कोई गम है
कुछ तो हुआ है ?
जिंदगी ठहर सी गई है
उमंगें लूट सी गई है
गम होकर भी लगता ,
कोई गम नही
यही तो सबसे बड़ा गम है ,
कोई गम क्यों नही ?