Friday, August 24, 2012

कौन हो तुम ? अपरिचित !

कौन हो तुम ? अपरिचित !

मेरे ह्रदय में उदार संवेदना को जागृत  किया 
आध्यात्मिक समझ को प्रेरित किया 
मेरे मानस को झकझोर दिया 
कल्पना को यथार्थ कर दिया 
 
कौन हो तुम ? अपरिचित !

असाधारण काव्य सौन्दर्य को प्रकाशित किया 
मनमोहक स्मृतियों को उभार दिया 
मेरे दब्बूपन को आक्रोशित किया 
मेरे जीवन का साक्षात्कार लिया 

Saturday, August 18, 2012

अंतहीन प्रतीक्षा

उदासी
खिन्नता भरी उदासी
तुम्हारी याद में
अंतहीन प्रतीक्षा !

प्रियतम
सपनो का
आधा डूबा चाँद
और
रंगहीन  परीक्षा !






Friday, August 17, 2012

निरंकुशता अमानवीय है...

निरंकुशता अमानवीय है .निरंकुश व्यक्ति दुसरे का भला नहीं कर सकता .कोई संस्था भी अगर निरंकुश हो जाय तो लोगों पर बोझ बढ़ जाता है. निरंकुशता सामंजस्य को तोड़ देता है . अहंकार को बढ़ावा देता है . यह प्रवृति हमारे माननीय राजनेताओं घर कर गयी है . इसका असर संसद पर भी परिलक्षित हो रहा है .यह भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है .संसद सामंती संस्था के रूप में काम न करे, इसे देखना अत्यावश्यक है.

Monday, August 13, 2012

सिर दर्द

सिर दर्द कि बिमारी भी बड़ी अजीब है ,कुछ न करने देती है न कुछ सोचने देती .खाने और घुमने का मन तो बिलकुल नहीं करता .कोई उपयोगी काम तो कर नहीं सकते . केवल कुछ हलके फुल्के ढंग से सोच सकते है ...तिल को ताड़ बना सकते है . बीती बाते याद कर सकते है और जीवन संघर्ष को अनुभव कर सकते है ...सुबह से परेशान था और निष्क्रिय अवस्था में सोचने का कार्यक्रम जारी था , पर हल्के फुल्के तरीके से .....
कुछ खुरापाती चिंतन को आपसे शेयर कर रहा हूँ .....

उपहास आदमी को आदमी बना देता है . आपके अंदर अपने उपहास को सहने का साहस है तो फिर आप हर बाधा को पार कर सकते है . निष्पक्ष तरीके से निर्णय ले सकते है . सत्य को समझ और जान सकते है ....उपहास सहने का साहस ही आपको धैर्यवान बना देता है तब आप किसी दुसरे का उपहास कभी नहीं करते है . किसी को उपहास का निशाना बनाना अपने ऊपर उपहास करना है .

किसी अनजानी सी जगह भाग जाऊ और वहीँ पर शिक्षा के ऊपर अपने प्रयोगों मूर्त रूप दूँ ...मैकाले की शिक्षा की सर्जरी कर दूं ,गांधी और टैगोर के विचारों पर आधारित शिक्षा को नए सन्दर्भ में कार्यान्वित करूँ .शिक्षा के उत्पाद का भारतीयकरण कर दूं ....भारतीय शिक्षा में मानवता का पुट भर दूं ... बिना समय बर्बाद किये ऐसी जगह की खोज में लग जाऊं और उसे सर्वश्रेष्ठ सर्जनात्मक प्रयोग स्थली के रूप में प्रसिद्ध कर दूं .

खुली प्रकृति के मध्य बेरोक टोक घुमने का अपना ही मज़ा है .यह मुक्ति का पहला मार्ग है .तब क्यों न इस प्राकृतिक रंगोत्सव का आनंद लिया जाय .अब इन कृत्रिम संसाधनों से नैराश्य का भाव उत्पन्न होने लगा है ....ताजगी हवा नहीं मिलती . प्रदूषित लोग और दूषित विचार के संपर्क से मन तिलमिला जाता है ...ये वैराग्य का आरम्भ तो नहीं !....खुदा जाने .