Saturday, December 4, 2010

अपना जहाँ

अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा 
राहों में भटकता रहा
मंजिल खो दिया
पहले आग लगाया
अब पानी खोज रहा
रोशनी आ कर चली गयी    
अब चाँद से सवेरा  मांग रहा
अपना जहाँ
खो दिया
अब खोज रहा 

8 comments:

  1. Jo kho gaya uski talaash me jo h wo bhi mat kho dijiyega...
    bas isi dua k sath-
    Monali :)

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  2. जो खो जाता है वो फिर कहाँ मिलता है,पर हाँ तलाश जारी रहती है..

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  3. तभी कहते हैं जो मिले उसे संभाल कर रखना ही जीवन है ...
    .

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  4. चाँद के पास भी तो उधार की रौशनी होती है मार्क जी ......!!

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  5. मार्क जी
    आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ , काफी प्रभावी पंक्तियाँ लिखी हैं आपने ....जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित हुई ...शुभकामनायें

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  6. kewal ram ji thanks a lot...most welcome

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  7. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  8. बहुत सही मार्क---गहन बात है---मानव ने स्वयं ही अपना परि्वेश-पर्यावरण, प्रक्रिति, सदाचरण को नष्ट किया अब विग्यान, दूसरे ग्रहों, नई नई खोजों, मनोरन्जनॊ, धन, भागदौड में ढूंढ रहा है ...ज़िन्दगी का मन्त्रा...बहुत खूब...बधाई

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