लमुहा एक स्थान जिससे मुझे काफी लगाव है .मेरे ननिहाल में एक तालाब है जिसे सभी लमुहा के नाम से जानते है .बचपन में यही पर छठ माता की घाट बनती थी और सभी बच्चे वहां की साफ़ सफाई करते थे .छठ पर्व की रात को हम मिटटी की बनी ढकनी में दिया रख कर लमुहा में तैराते थे फिर उसे धान की पुआल पर रख कर लमुहा के बीच ले जाने का प्रयास करते थे . सच बहुत मज़ा आता था.मै एक अच्छा तैराक भी था .कई बार मैंने लामुहा को आर पार भी किया था .सब बच्चे मेरा लोहा मानते थे .अभी कुछ दिन पहले उस स्थान को देख कर वो दिन याद आ गए .लमुहा एक ऐसी जगह है जहाँ से मेरे बचपन की यादें जुडी है.
आज लमुहा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ....चारो तरफ गन्दगी ही गन्दगी ...मछलियों का जीना दूभर हो गया है ...और चारो ओर से कब्ज़ा करने वाले कोई मौका नहीं छोड़ रहे ...साफ़ सफाई का भी बुरा हाल है ...उसका आयतन भी छोटा होता जा रहा है...कुछ सालों में वह हमसे विदा ले लेगा और फिर वहां पर पक्के कंक्रीट के घर नज़र आयेंगे .....बेचारा!... उसे भी लोगों ने नहीं छोड़ा .
आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ? प्यारी चीज थी तो क्या हुआ .. अब तो रहा नहीं , उस प्यार का लोभ... अब तो छोड़ दो !
Thursday, December 23, 2010
Friday, December 10, 2010
दर्द आँखों से छलक ही गया
दर्द आँखों से छलक ही गया
रोकने की बहुत कोशिश की
कहानी लम्बी है
कैसे बताऊँ !
जुदाई की बरसात में बह गया
रोकने की बहुत कोशिश की
कहानी लम्बी है
कैसे बताऊँ !
जुदाई की बरसात में बह गया
Saturday, December 4, 2010
Thursday, December 2, 2010
अँधेरा
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर .. अफ़सोस !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
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