Thursday, November 26, 2009

नाटक ....

कोई सिर्फ़ गजरे से घर सजाना चाहता है तो किसी को आकाश ही चाहिए । किसी को कम पर संतोष नही ...सब एक दुसरे को धोखा देने में लगे है । हर कोई दिखावा ही कर रहा ...सादगी तो जैसे बहुत पीछे .....!
किसी के लिए रिश्ते नाते सब नाटक है ...इसी बहाने लूटने का मौका मिल जाता है ....ओह !अग्नि के सात फेरे का कोई मोल नही ....
देह को लाल पिला करना ही आधुनिकता हो गई ...सबको हो क्या गया है !अबूझ पहेली .....हद हो गई है ।
....कोई रोकता क्यों नही ,रोकने वाले भी तो मिलावटी हो गए है ।

Monday, November 16, 2009

क्या दिखावा है !

वाह !
एकदम रंगीन
इतने पारंगत
नक़ल भी छिप गया
इसे कहते है ...कलाकारी

सच !
हम एक रंगमंच पर
नाच रहे
अपनी अपनी
कला को बेचकर
क्या दिखावा है !

Sunday, November 1, 2009

सब हंस रहे है ...

हंसों
खूब हंसों
सब हंस रहे है
तुम पीछे हो !
अपने
बेगाने
नए
पुराने
सब हंस रहे है
और
तुम पीछे हो !

वादा ...

वादा ...नफरत हो गई । इसने तो मुझे सबसे ज्यादा तोडा है । मेरी दुनिया को उजाड़ कर रख दिया । अब नही करता । किसी से भी नही ....अपने आप से भी नही ।

ज़माना बदल गया !

अब घोडें कम दीखते है । फिल्मों में भी नहीं । उनका भी एक ज़माना था । शान से दौड़ते थे । ....पर अब क्या काम ?
बेचारें । रहेगें कहाँ ? हमने तो जगह छोड़ी ही नहीं ।

भीड़ ...

अकेले ही रहना है । भीड़ नही ....मौलिकता को खा जाती है । सोचना अकेले ही है ....हिस्सेदारी नहीं करनी ।

तारा ..

मंजिल । चल तो रहा हूँ । पेड़ों की छांव भी है ....
....पर चैन नही । एक तारा कहीं खो गया है ।
....अब क्या करूँ ।

सब सपना ..

ठंडी हवा
एक महक
कुछ बातें
ये नजारें
पर्वत ,
नदियाँ
सब सपना
और कुछ नही