Saturday, September 19, 2009

मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही

....अपने को ही पहचान न सका
....और भटक गया
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
..जो कुछ था उसे भी बहता पाया
....अपने को ही पहचान न सका

दर्द के वीराने में .....
भटकता ही रह गया
कुछ ढूढता ही रह गया
....और एक कंकड़ भी न पा सका

......एक इंसान हूँ

मै तुम्हारी तरह... जाने वालो
जरा
मुड के देखो मुझे .......एक इंसान हूँ ।
.....................पर मेरी आवाज किसी ने नही सुनी ।
.................कांपती हुई आवाज विलीन हो गई ।
................मै ठगा देखता ही रह गया और कारवां निकल गया ।
...........शायद मेरी किस्मत ने मुझे धोखा दे दिया
.........और मै एक नाकामयाब इंसान बन गया ।

Friday, September 4, 2009

किस्मत .....

किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।

Tuesday, September 1, 2009

क्यों ?

रंगीली दुनिया कभी बेरंग क्यों लगती है ?
ज़िन्दगी इतनी छोटी है ,फ़िर लम्बी क्यों लगती है ?
इंसान दयालु से हैवान कैसे बन जाता है ?
कोई क्यों किसी को छोड़ कर चला जाता है ?
.....अंत में सब शून्य ही क्यों दीखता है ?