Friday, July 17, 2009

मेरा जहाँ ...

अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ
कैसे ?खो दिया
ये भी पता नही
साँसे थम गई
आवाज......
वो भी गुम हो गई
मेरी मंजिल तो मिली नही
दुसरे का ढूढ़ रहा हूँ
अपने ही घर में आग लगाया
अब पानी खोज रहा हूँ
अँधेरी रात को अपनाया
और भटक गया
अब चाँद से उजाला मांग रहा हूँ
अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ

Tuesday, July 7, 2009

पुआल

पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।
आज तो सिंथेटिक का ज़माना है । उस बेचारे का क्या काम ?आज तो गाय बैलों को भी नशीब नही होता ...हमें कैसे होगा ?
हाँ जिस दिन सिंथेटिक हमें ले डूबेगा उस दिन उसकी बहुत याद आनेवाली है ।

Saturday, July 4, 2009

कोई गम क्यों नही ?

इन्तजार करना नही
अनुसरण का स्वभाव नही
कोई गिला शिकवा नही
कोई वादा भी नही
उपहास करना आदत नही
और सुनना भी नही
बहुत निराशा भी नही
ज्यादा आस भी नही
तब क्यों कुछ ठीक नही ?
बोझिल मन और भारी कदम है
लगता दिल में कोई गम है
कुछ तो हुआ है ?
जिंदगी ठहर सी गई है
उमंगें लूट सी गई है
गम होकर भी लगता ,
कोई गम नही
यही तो सबसे बड़ा गम है ,
कोई गम क्यों नही ?