Tuesday, June 2, 2009

ख्वाब

मेरा हर ख्वाब तुमसे है । ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ ।
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।

7 comments:

  1. hmm...khab to kabhi kisi ke na tute....तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।...nice feelings..

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  2. तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
    ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
    कैसे छोड़ दूँ ?

    Bahut pyaari panktiyaan...

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  3. Very nice,thoughtful and romantic.

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  4. khawaabon me tum khyaalon me tum
    saanso me tum hi samaai ho
    ab is paagal dilka me kyaa karoon
    jiske jarre jarre me tum samaai ho .

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  5. ख्वाब तो रोज़ नयी मूरत बनाते हैं................. पर जिसे सजीव कर लिया उसे छोड़ना मुश्किल होता है........... अच्छा लिखा है

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  6. sahi hai mere dost , bahit sahi hai ... kya likha hai ..khawab ...waaaaaaaaaaaaaaaaah

    badhai

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  7. मेरा हर ख्वाब तुमसे है
    ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ
    .और तुम गुमसुम बैठी हो
    ये ठीक नही है ....
    अब मुस्कुरा भी दो
    मुझे अच्छा लगेगा
    तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ
    कैसे तोड़ दूँ ?

    वाह..... !!
    मार्क जी आपकी रचना में निखार आने लगा है ....बस जारी रखें .....

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