Friday, June 26, 2009

ईर्ष्या

कमजोर स्वाभिमान को देखना हो तो ईर्ष्या करो । आपकी अंतरात्मा हिल जायेगी । सारे गुण धुल जायेंगे । दुसरे का नुक्सान हो या न हो पर आपका तो पक्का होगा । शायद आगे की राह बंद हो जाय । शायद नही........ऐसा जरुर होगा । जब चरित्र ही ईर्ष्या करना शुरू कर दे ,तब पतन निश्चित है । यह भावी पीढियों के लिए भी नासूर बन जाएगा । इर्ष्या आपको भ्रष्टता की कब्र में धकेल देगा .......आप इसका दामन छोड़ दे ।

Thursday, June 25, 2009

हे भगवान् अब इन्तजार नही होता ..........

रातों में नही , दिन में ही तारें नजर आ गए ।
ऐसा तो सोचा न था ,अश्क आंखों से बह गए ।
बंद आंखों में तेरा ही चेहरा दीखता है ।
सुनो तो ,ये मेरा मन तुझसे कुछ कहता है ।
ख़्वाबों में न सोचा था ,पर तेरे कदम बहक गए ।
आँख अभी लगी ही थी , तुम चुपके से निकल गए ।

Friday, June 19, 2009

दुर्भाग्य .....

दुर्भाग्य ने पीछा नही छोड़ा । इस बार भी मुझे लपेट ही लिया । ऐसा तो सपने में भी नही सोचा था ...पर मेरे सोचने और न सोचने से क्या फर्क पड़ता है ?.....जो होना था , हो गया । अब आगे ....... ।
कुछ नही सोचना है , बस करना है .....वह चाहे कुछ भी हो .....झाडू लगाना हो , लोहा ढोना हो , किसी की गुलामी करनी हो ,नाली साफ़ करनी हो ...कुछ भी मतलब ग़लत छोड़ कुछ भी ...... ।
आज मन पर कोई बोझ नही । बहुत दे दिया । मिला कुछ भी नही । यकीं मानिए ..अब सबकुछ नही देना है । चाहे कुछ मिले या न मिले .......

एक बंगला बने न्यारा ....

बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा ।
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज में । रात के करीब ग्यारह बजे । यह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है ।
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है ।
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई है । उन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ ।
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते है । सोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है ।

Thursday, June 18, 2009

एक सपना ....

दिल बैठ गया ....दिल की बातें अन्दर ही रह गई ।
इतना तो पता चल ही गया ....सपना देख रहा था ...जिसे एक दिन टूटना ही था ।
अपमानित भी हुआ ....शायद जिंदगी में पहली बार ....!
उसने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया । अन्दर तक हिल गया । दुबारा हिम्मत ही नही बची ....
इतना आकर्षण कभी नसीब नही हुआ था ....पर टुटा तो सीधे फर्श पर गिरा ।
एक सपना .....भूल जाना ही बेहतर है । यही प्रायश्चित है ।

Sunday, June 14, 2009

मंजिल

चलता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर कोई पुकारा ।

गाता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर तेरा सहारा ।

रुकना नही तू ,टूटना नही तू ,आगे बढ़ते जाना ।

मंजिल मिलेगी ,इक दिन वादा रहा ,ये वादा .....

Wednesday, June 10, 2009

नैतिकता ....

नैतिकता ...नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है । बचपन में किताबों में पढ़ा था । आज पैसा नैतिकता को खा चुका है । नैतिक आचरण करने वाले लोग मलवे के रूप में ही कभी कभी दिख जाते है ...उदास है बेचारे उन्हें जल्द ही कूडेदान में फेंका जाएगा । जिंदगी भर जिन आदर्शों पर चलते रहे ...उनका यह हाल ...आंखों से देखा नही जाता ।
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।

Tuesday, June 2, 2009

ख्वाब

मेरा हर ख्वाब तुमसे है । ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ ।
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।