आशा के पर लग गए और तुम अभी उड़े नहीं क़यामत का इन्तजार कर रहे क्या ? प्यारी चीज थी तो क्या हुआ .. अब तो रहा नहीं , उस प्यार का लोभ... अब तो छोड़ दो !
Friday, December 4, 2009
मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?
....पर क्या करे इस बहाव का भी अपना मज़ा है भले ही कोई उपलब्धि नहीं है ..पर शान्ति बहुत है . क्या इस शान्ति को छोड़ कर आगे बढ़ जाऊं . हाँ यही सही रहेगा ..पर फिर शान्ति की लालच आ ही जाती है ....बहुत बुरी आदत है ..पर मजेदार आदत है ....आप ही बताओ ज़िन्दगी ऐसे चलती है भला ! मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?
Thursday, November 26, 2009
नाटक ....
किसी के लिए रिश्ते नाते सब नाटक है ...इसी बहाने लूटने का मौका मिल जाता है ....ओह !अग्नि के सात फेरे का कोई मोल नही ....
देह को लाल पिला करना ही आधुनिकता हो गई ...सबको हो क्या गया है !अबूझ पहेली .....हद हो गई है ।
....कोई रोकता क्यों नही ,रोकने वाले भी तो मिलावटी हो गए है ।
Monday, November 16, 2009
क्या दिखावा है !
वाह !
एकदम रंगीन
इतने पारंगत
नक़ल भी छिप गया
इसे कहते है ...कलाकारी
सच !
हम एक रंगमंच पर
नाच रहे
अपनी अपनी
कला को बेचकर
क्या दिखावा है !
Sunday, November 1, 2009
सब हंस रहे है ...
खूब हंसों
सब हंस रहे है
तुम पीछे हो !
अपने
बेगाने
नए
पुराने
सब हंस रहे है
और
तुम पीछे हो !
ज़माना बदल गया !
बेचारें । रहेगें कहाँ ? हमने तो जगह छोड़ी ही नहीं ।
Saturday, October 3, 2009
यादें ......
उफ्फ ये यादें .....मानो जीवन भर साथ निभाने का ठेका ले रखा है ।
क्या करूँ ...अब तो इस बेचारे पर उसे दया भी नही आती ।
सच ! सोच कर ही काँप जाता हूँ ....उफ्फ ये यादें ।
Saturday, September 19, 2009
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
....और भटक गया
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
..जो कुछ था उसे भी बहता पाया
....अपने को ही पहचान न सका
दर्द के वीराने में .....
भटकता ही रह गया
कुछ ढूढता ही रह गया
....और एक कंकड़ भी न पा सका
......एक इंसान हूँ
जरा
मुड के देखो मुझे .......एक इंसान हूँ ।
.....................पर मेरी आवाज किसी ने नही सुनी ।
.................कांपती हुई आवाज विलीन हो गई ।
................मै ठगा देखता ही रह गया और कारवां निकल गया ।
...........शायद मेरी किस्मत ने मुझे धोखा दे दिया
.........और मै एक नाकामयाब इंसान बन गया ।
Friday, September 4, 2009
किस्मत .....
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।
Tuesday, September 1, 2009
Monday, August 17, 2009
हाय ...वो पल .....
वो पल
आसमान में लालिमा
आंखों में आईना
प्रेम का ये जहाँ
एक बाग़ में हम
और मुहब्बत की तितली
जब तुम मिली .........
हाय ..वो पल ...
Friday, July 17, 2009
मेरा जहाँ ...
अब भटक रहा हूँ
कैसे ?खो दिया
ये भी पता नही
साँसे थम गई
आवाज......
वो भी गुम हो गई
मेरी मंजिल तो मिली नही
दुसरे का ढूढ़ रहा हूँ
अपने ही घर में आग लगाया
अब पानी खोज रहा हूँ
अँधेरी रात को अपनाया
और भटक गया
अब चाँद से उजाला मांग रहा हूँ
अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ
Tuesday, July 7, 2009
पुआल
पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।
आज तो सिंथेटिक का ज़माना है । उस बेचारे का क्या काम ?आज तो गाय बैलों को भी नशीब नही होता ...हमें कैसे होगा ?
हाँ जिस दिन सिंथेटिक हमें ले डूबेगा उस दिन उसकी बहुत याद आनेवाली है ।
Saturday, July 4, 2009
कोई गम क्यों नही ?
अनुसरण का स्वभाव नही
कोई गिला शिकवा नही
कोई वादा भी नही
उपहास करना आदत नही
और सुनना भी नही
बहुत निराशा भी नही
ज्यादा आस भी नही
तब क्यों कुछ ठीक नही ?
बोझिल मन और भारी कदम है
लगता दिल में कोई गम है
कुछ तो हुआ है ?
जिंदगी ठहर सी गई है
उमंगें लूट सी गई है
गम होकर भी लगता ,
कोई गम नही
यही तो सबसे बड़ा गम है ,
कोई गम क्यों नही ?
Friday, June 26, 2009
ईर्ष्या
Thursday, June 25, 2009
हे भगवान् अब इन्तजार नही होता ..........
ऐसा तो सोचा न था ,अश्क आंखों से बह गए ।
बंद आंखों में तेरा ही चेहरा दीखता है ।
सुनो तो ,ये मेरा मन तुझसे कुछ कहता है ।
ख़्वाबों में न सोचा था ,पर तेरे कदम बहक गए ।
आँख अभी लगी ही थी , तुम चुपके से निकल गए ।
Friday, June 19, 2009
दुर्भाग्य .....
कुछ नही सोचना है , बस करना है .....वह चाहे कुछ भी हो .....झाडू लगाना हो , लोहा ढोना हो , किसी की गुलामी करनी हो ,नाली साफ़ करनी हो ...कुछ भी मतलब ग़लत छोड़ कुछ भी ...... ।
आज मन पर कोई बोझ नही । बहुत दे दिया । मिला कुछ भी नही । यकीं मानिए ..अब सबकुछ नही देना है । चाहे कुछ मिले या न मिले .......
एक बंगला बने न्यारा ....
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज में । रात के करीब ग्यारह बजे । यह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है ।
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है ।
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई है । उन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ ।
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते है । सोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है ।
Thursday, June 18, 2009
एक सपना ....
इतना तो पता चल ही गया ....सपना देख रहा था ...जिसे एक दिन टूटना ही था ।
अपमानित भी हुआ ....शायद जिंदगी में पहली बार ....!
उसने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया । अन्दर तक हिल गया । दुबारा हिम्मत ही नही बची ....
इतना आकर्षण कभी नसीब नही हुआ था ....पर टुटा तो सीधे फर्श पर गिरा ।
एक सपना .....भूल जाना ही बेहतर है । यही प्रायश्चित है ।
Sunday, June 14, 2009
मंजिल
चलता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर कोई पुकारा ।
गाता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर तेरा सहारा ।
रुकना नही तू ,टूटना नही तू ,आगे बढ़ते जाना ।
मंजिल मिलेगी ,इक दिन वादा रहा ,ये वादा .....
Wednesday, June 10, 2009
नैतिकता ....
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।
Tuesday, June 2, 2009
ख्वाब
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।
Friday, May 15, 2009
पहेली
क्या यह वश में है ?.......शायद !
अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।
पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।
जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !
Tuesday, May 12, 2009
पथ की पहचान
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।
Wednesday, May 6, 2009
हम तो निकल पड़े।
दुनिया उलट जाए । सूरज चाँद बन जाए .... चाँद निकलना ही बंद कर दे ।
हम रुकने वाले नही। हम तो निकल पड़े ।
इरादा ........ !
इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।
पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।
मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।
मन तो खाली है....
Monday, May 4, 2009
बचपन
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।
छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।
कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।
गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।
गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।
वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।
बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।
पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।
नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।
अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।
Wednesday, April 29, 2009
समाधान
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
नीला आसमान....
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।
Tuesday, April 28, 2009
Friday, April 24, 2009
कीचड़
सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ।
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।
यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो ....
Monday, April 20, 2009
आकाश
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
Friday, April 17, 2009
सपना
Thursday, April 16, 2009
कदम थिरक रहे है ...
यह नई दिशा देगा । दिमाग को लचीला बनाएगा ।
जीना सिखलाएगा । यही तो साँसों में दम भरेगा ।
....तो रोको मत । थिरकने दो ।
इरादा
अभी थोडी मस्ती में है । मौज कर रहे है ।
पर एक दिन ठानेगे जरुर ....
Wednesday, April 15, 2009
पारंपरिक पहनावा
Monday, April 13, 2009
आजाद ख़याल
Friday, April 10, 2009
कंकड़
इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही ।
पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना । ये ठीक नही ।
सादगी ही जीवन दर्शन है ....
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती है । पर गुमशुम ही रहती है ।
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती ।
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता है । आशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगी । देर भले हो जाय ।
सूखे पत्ते
अब कहाँ गए होंगे ? कुछ समझ नही आता । बेचारे !
क्या सूखे पत्तों की भाँती हम भी एक दिन सुख जायेगे ? क्या हमारा भी वही हाल होगा ? क्या तब हमें कोई याद करेगा ?
कुछ समझ नही आता ।
Thursday, April 9, 2009
नानी का गाँव
बचपन का साथी
(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )
Wednesday, April 8, 2009
सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है
काश !
दिल की प्यास
अभी सारा जग धुंआ धुंआ दीखता है ।
हर जगह कंकड़ और पथरीली राहें ही दिखती है ।
आज अन्धेरें का साम्राज्य छाया हुआ है ।
पर , एक दिन सारे जग में उजाला होगा ।
देखना है , अँधेरा कबतक रहता है ।
आस लम्बी है , हटा कर ही दम लेंगे ।
भरोसा
Monday, April 6, 2009
आँखें
आईना देखो
झूठे ख्वाब टूट जायेगे ।
हकीकत सामने आ जायेगी ।
जिंदगी का मकसद मालूम हो जाएगा ।
सारी हसरतें पुरी हो जायेगी ।
खुला गगन सबके लिए है
भटके लोगो को सही रास्ता दीखा
उदास होकर तुझे जिंदगी को नही जीना
खुला गगन सबके लिए है , कभी मायूश न होना
तुम अच्छे हो, खुदा की इस बात को सदा याद रखना
स्वेत श्याम का आनंद
जिंदगी एक दौड़ है
वक्त नही है ..
Sunday, April 5, 2009
प्यार
तुम कही भी रहो । तुम्हारी जिंदगी चलती ही रहे ।
मै तो कुछ भी नही । मेरा साया भी तुझ पर न पड़े ।
जिंदगी की कहानी
लज्जा और हया
शाम ढल चुकी है
काली घटा
* पूरब की लालिमा और तन्हाई बड़ा कष्ट देती है ।