Friday, December 4, 2009

मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?

जीवन की इस धारा में बहते चले जाना कभी कभी बहुत अच्छा भी लगता है ..पर कभी लगता है की इसी तरह बिना किसी प्रतिरोध के बहते रहना अच्छा नहीं है . ऐसा लगता है की इनर्जी ख़त्म होती जा रही है . उसे समेटना होगा और फिर प्रतिरोध भी करना होगा .
....पर क्या करे इस बहाव का भी अपना मज़ा है भले ही कोई उपलब्धि नहीं है ..पर  शान्ति बहुत है . क्या इस शान्ति को छोड़ कर आगे बढ़ जाऊं . हाँ यही सही रहेगा ..पर फिर शान्ति की लालच आ ही जाती है ....बहुत बुरी आदत है ..पर मजेदार आदत है ....आप ही बताओ ज़िन्दगी ऐसे चलती है भला ! मजे के लिए बहते जाना उचित है क्या ?

Thursday, November 26, 2009

नाटक ....

कोई सिर्फ़ गजरे से घर सजाना चाहता है तो किसी को आकाश ही चाहिए । किसी को कम पर संतोष नही ...सब एक दुसरे को धोखा देने में लगे है । हर कोई दिखावा ही कर रहा ...सादगी तो जैसे बहुत पीछे .....!
किसी के लिए रिश्ते नाते सब नाटक है ...इसी बहाने लूटने का मौका मिल जाता है ....ओह !अग्नि के सात फेरे का कोई मोल नही ....
देह को लाल पिला करना ही आधुनिकता हो गई ...सबको हो क्या गया है !अबूझ पहेली .....हद हो गई है ।
....कोई रोकता क्यों नही ,रोकने वाले भी तो मिलावटी हो गए है ।

Monday, November 16, 2009

क्या दिखावा है !

वाह !
एकदम रंगीन
इतने पारंगत
नक़ल भी छिप गया
इसे कहते है ...कलाकारी

सच !
हम एक रंगमंच पर
नाच रहे
अपनी अपनी
कला को बेचकर
क्या दिखावा है !

Sunday, November 1, 2009

सब हंस रहे है ...

हंसों
खूब हंसों
सब हंस रहे है
तुम पीछे हो !
अपने
बेगाने
नए
पुराने
सब हंस रहे है
और
तुम पीछे हो !

वादा ...

वादा ...नफरत हो गई । इसने तो मुझे सबसे ज्यादा तोडा है । मेरी दुनिया को उजाड़ कर रख दिया । अब नही करता । किसी से भी नही ....अपने आप से भी नही ।

ज़माना बदल गया !

अब घोडें कम दीखते है । फिल्मों में भी नहीं । उनका भी एक ज़माना था । शान से दौड़ते थे । ....पर अब क्या काम ?
बेचारें । रहेगें कहाँ ? हमने तो जगह छोड़ी ही नहीं ।

भीड़ ...

अकेले ही रहना है । भीड़ नही ....मौलिकता को खा जाती है । सोचना अकेले ही है ....हिस्सेदारी नहीं करनी ।

तारा ..

मंजिल । चल तो रहा हूँ । पेड़ों की छांव भी है ....
....पर चैन नही । एक तारा कहीं खो गया है ।
....अब क्या करूँ ।

सब सपना ..

ठंडी हवा
एक महक
कुछ बातें
ये नजारें
पर्वत ,
नदियाँ
सब सपना
और कुछ नही

Saturday, October 3, 2009

यादें ......

यादें ....उफ्फ ये यादें । ज़िन्दगी भर का दर्द ...और गम । कभी दिन के उजालें में तो कभी रात के अन्धेरें में । कभी मेले में तो कभी वीराने में हलचल ...
उफ्फ ये यादें .....मानो जीवन भर साथ निभाने का ठेका ले रखा है ।
क्या करूँ ...अब तो इस बेचारे पर उसे दया भी नही आती ।
सच ! सोच कर ही काँप जाता हूँ ....उफ्फ ये यादें ।

Saturday, September 19, 2009

मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही

....अपने को ही पहचान न सका
....और भटक गया
मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी खुबसूरत नही
..जो कुछ था उसे भी बहता पाया
....अपने को ही पहचान न सका

दर्द के वीराने में .....
भटकता ही रह गया
कुछ ढूढता ही रह गया
....और एक कंकड़ भी न पा सका

......एक इंसान हूँ

मै तुम्हारी तरह... जाने वालो
जरा
मुड के देखो मुझे .......एक इंसान हूँ ।
.....................पर मेरी आवाज किसी ने नही सुनी ।
.................कांपती हुई आवाज विलीन हो गई ।
................मै ठगा देखता ही रह गया और कारवां निकल गया ।
...........शायद मेरी किस्मत ने मुझे धोखा दे दिया
.........और मै एक नाकामयाब इंसान बन गया ।

Friday, September 4, 2009

किस्मत .....

किस्मत सो गई .... आखे थक गई । अब जाओ ..... मै भी जा चुका । अब मुझे तन्हा रहने दो । मुझे मजाक बनने दो .... तुमसे कोई शिकायत नही । गलती मेरी है । इतना चाहा । सारा जीवन दे दिया । अब मेरी शाम आ गई है तो तुम भी ...
पागल था । तेरी मुस्कुराहटों का । जागता था रातभर तुमको यादकर ..... तुमने अपनी अदाओं से जादू कर दिया ।
मै खिचता चला गया । तू मेरी मंजील थी । अब मै क्या राहें भी थक गई पर तेरा दर्शन नही हुआ । अब मै जा रहा हूँ ...... सबको छोड़कर ।

Tuesday, September 1, 2009

क्यों ?

रंगीली दुनिया कभी बेरंग क्यों लगती है ?
ज़िन्दगी इतनी छोटी है ,फ़िर लम्बी क्यों लगती है ?
इंसान दयालु से हैवान कैसे बन जाता है ?
कोई क्यों किसी को छोड़ कर चला जाता है ?
.....अंत में सब शून्य ही क्यों दीखता है ?

Monday, August 17, 2009

हाय ...वो पल .....

कुछ ख़ास था
वो पल
आसमान में लालिमा
आंखों में आईना
प्रेम का ये जहाँ
एक बाग़ में हम
और मुहब्बत की तितली
जब तुम मिली .........
हाय ..वो पल ...

Friday, July 17, 2009

मेरा जहाँ ...

अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ
कैसे ?खो दिया
ये भी पता नही
साँसे थम गई
आवाज......
वो भी गुम हो गई
मेरी मंजिल तो मिली नही
दुसरे का ढूढ़ रहा हूँ
अपने ही घर में आग लगाया
अब पानी खोज रहा हूँ
अँधेरी रात को अपनाया
और भटक गया
अब चाँद से उजाला मांग रहा हूँ
अपना जहाँ ख़ुद ही खो दिया
अब भटक रहा हूँ

Tuesday, July 7, 2009

पुआल

पुआल को देखे ज़माना हो गया । बचपन में देखा था । क्या दिन थे....पुआल पर ही खाना और सोना भी होता था । खूब जमकर खेलते और कूदते थे ।
आज तो सिंथेटिक का ज़माना है । उस बेचारे का क्या काम ?आज तो गाय बैलों को भी नशीब नही होता ...हमें कैसे होगा ?
हाँ जिस दिन सिंथेटिक हमें ले डूबेगा उस दिन उसकी बहुत याद आनेवाली है ।

Saturday, July 4, 2009

कोई गम क्यों नही ?

इन्तजार करना नही
अनुसरण का स्वभाव नही
कोई गिला शिकवा नही
कोई वादा भी नही
उपहास करना आदत नही
और सुनना भी नही
बहुत निराशा भी नही
ज्यादा आस भी नही
तब क्यों कुछ ठीक नही ?
बोझिल मन और भारी कदम है
लगता दिल में कोई गम है
कुछ तो हुआ है ?
जिंदगी ठहर सी गई है
उमंगें लूट सी गई है
गम होकर भी लगता ,
कोई गम नही
यही तो सबसे बड़ा गम है ,
कोई गम क्यों नही ?

Friday, June 26, 2009

ईर्ष्या

कमजोर स्वाभिमान को देखना हो तो ईर्ष्या करो । आपकी अंतरात्मा हिल जायेगी । सारे गुण धुल जायेंगे । दुसरे का नुक्सान हो या न हो पर आपका तो पक्का होगा । शायद आगे की राह बंद हो जाय । शायद नही........ऐसा जरुर होगा । जब चरित्र ही ईर्ष्या करना शुरू कर दे ,तब पतन निश्चित है । यह भावी पीढियों के लिए भी नासूर बन जाएगा । इर्ष्या आपको भ्रष्टता की कब्र में धकेल देगा .......आप इसका दामन छोड़ दे ।

Thursday, June 25, 2009

हे भगवान् अब इन्तजार नही होता ..........

रातों में नही , दिन में ही तारें नजर आ गए ।
ऐसा तो सोचा न था ,अश्क आंखों से बह गए ।
बंद आंखों में तेरा ही चेहरा दीखता है ।
सुनो तो ,ये मेरा मन तुझसे कुछ कहता है ।
ख़्वाबों में न सोचा था ,पर तेरे कदम बहक गए ।
आँख अभी लगी ही थी , तुम चुपके से निकल गए ।

Friday, June 19, 2009

दुर्भाग्य .....

दुर्भाग्य ने पीछा नही छोड़ा । इस बार भी मुझे लपेट ही लिया । ऐसा तो सपने में भी नही सोचा था ...पर मेरे सोचने और न सोचने से क्या फर्क पड़ता है ?.....जो होना था , हो गया । अब आगे ....... ।
कुछ नही सोचना है , बस करना है .....वह चाहे कुछ भी हो .....झाडू लगाना हो , लोहा ढोना हो , किसी की गुलामी करनी हो ,नाली साफ़ करनी हो ...कुछ भी मतलब ग़लत छोड़ कुछ भी ...... ।
आज मन पर कोई बोझ नही । बहुत दे दिया । मिला कुछ भी नही । यकीं मानिए ..अब सबकुछ नही देना है । चाहे कुछ मिले या न मिले .......

एक बंगला बने न्यारा ....

बाहर कोई संगीत बज रहा है , ऐसा लगा ।
गीत चल रहा था ...
''एक बंगला बने न्यारा ......''
के एल सहगल साहब की आवाज में । रात के करीब ग्यारह बजे । यह गीत मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर देता है ।
सारे जीवन का फल्स्फां इसी में दिखता है ।
मुझे शुरू से ही पुराने गानों की हवा नसीब हुई है । उन हवाओं में जो आनंद है ...वह नए गाने के झोकों में कहाँ ।
अतीत के भूले बिसरे गीत मुझे अपनी पुरानी तहजीब याद दिलाते है । सोचते सोचते आंखों में नमी छा जाती है ।

Thursday, June 18, 2009

एक सपना ....

दिल बैठ गया ....दिल की बातें अन्दर ही रह गई ।
इतना तो पता चल ही गया ....सपना देख रहा था ...जिसे एक दिन टूटना ही था ।
अपमानित भी हुआ ....शायद जिंदगी में पहली बार ....!
उसने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया । अन्दर तक हिल गया । दुबारा हिम्मत ही नही बची ....
इतना आकर्षण कभी नसीब नही हुआ था ....पर टुटा तो सीधे फर्श पर गिरा ।
एक सपना .....भूल जाना ही बेहतर है । यही प्रायश्चित है ।

Sunday, June 14, 2009

मंजिल

चलता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर कोई पुकारा ।

गाता जा ऐ मुसाफिर ,कहीं दूर तेरा सहारा ।

रुकना नही तू ,टूटना नही तू ,आगे बढ़ते जाना ।

मंजिल मिलेगी ,इक दिन वादा रहा ,ये वादा .....

Wednesday, June 10, 2009

नैतिकता ....

नैतिकता ...नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है । बचपन में किताबों में पढ़ा था । आज पैसा नैतिकता को खा चुका है । नैतिक आचरण करने वाले लोग मलवे के रूप में ही कभी कभी दिख जाते है ...उदास है बेचारे उन्हें जल्द ही कूडेदान में फेंका जाएगा । जिंदगी भर जिन आदर्शों पर चलते रहे ...उनका यह हाल ...आंखों से देखा नही जाता ।
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।

Tuesday, June 2, 2009

ख्वाब

मेरा हर ख्वाब तुमसे है । ख़्वाबों में तुझे ही हर रोज पाता हूँ ।
.....और तुम गुमसुम बैठी हो । ये ठीक नही है ....अब मुस्कुरा भी दो ।
मुझे अच्छा लगेगा ।
तुझे देख कर ही तो ख्वाब बुनता हूँ । कैसे तोड़ दूँ ?
ख़्वाबों में ही तुझे तराशा है । कड़ी मेहनत से एक मूरत बनी है ।
कैसे छोड़ दूँ ?
तेरी चमकीली आँखें ...मेरे सपनों की बुनियाद है ।
अब आ जाओ ...देर न करो । ये ठीक नही है ।

Friday, May 15, 2009

पहेली

बेफिक्री से जीना चाहता हूँ । कुछ हाथ नही लगने पर भी मस्त रहना चाहता हूँ ।
क्या यह वश में है ?.......शायद !
अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।
पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।
जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !

Tuesday, May 12, 2009

पथ की पहचान

कहीं पढ़ा था ''मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नही ।'' मै भी इस मानव यात्रा का एक पथिक हूँ । पथ की पहचान अभी करनी है । इर्ष्या से ग्रषित नही होना चाहता । गर्व से दूषित भी नही होना चाहता ।
क्या करू?.... अज्ञानता जाती ही नही ।
पाषाण की कठोर छाती को चिर कर अज्ञात पाताल से रस खीचना चाहता हूँ । निरंतर उर्ध्वगामी होना चाहता हूँ ।
क्या करू ?...संवेदनशीलता है ही नही ।

Wednesday, May 6, 2009

हम तो निकल पड़े।

हम रुकने वाले नही ..... तुमने बहुत देर कर दी । हम तो निकल पड़े।
दुनिया उलट जाए । सूरज चाँद बन जाए .... चाँद निकलना ही बंद कर दे ।
हम रुकने वाले नही। हम तो निकल पड़े ।

इरादा ........ !

इरादा ........ !
इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।
पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।
मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।

मन तो खाली है....

उस उजाले का क्या काम जो सारे शहर में दिख रहा । मन तो खाली है । पहले उसे भरना है । वहां अन्धेरें ने घोंसला बना लिया है । उसे उजाड़ना है ।

Monday, May 4, 2009

बचपन

मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है ,
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।

छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।

कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।

गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।

गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।

वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।

बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।

पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।

नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।

अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।

Wednesday, April 29, 2009

समाधान

अन्दर तो छोडिये साब ...छत पर लेट कर भी कोई समाधान नही खोज पता । इसे जड़ता नही कहा जाए तो और क्या ?हालत तो ऐसी है की जब अपनी ही पीडाओं का पता नही तो दूसरों ......!
अभी भी रोटी के संघर्ष को नही जान पाया । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......
घर और मुल्क की गरीबी का कोई प्रभाव नही पड़ा । कैसे माफ़ किया जाय मुझे ......

नीला आसमान....

कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।

Tuesday, April 28, 2009

एक मोमबती

एक मोमबती हाथ में । जिंदगी की सबसे बड़ी जित है । मन में बसे डर के खिलाफ मोर्चा खोले हुए ..... एक मोमबती ।
मन के अंधेरे को नेपथ्य में धकेल दिया ..... एक मोमबती ।
बुझ गई तो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी हार होगी ।

रोशनी

एक मोमबती ले निकली हूँ । घुप अँधेरी रात है ।
मेरे लिए नही यह कोई नई बात है । सारे जग में कर दूंगी उजाला ।
हिम्मत है तो रोक कर दिखाओं ।

.................. रोशनी

Friday, April 24, 2009

कीचड़

सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी हुई है ।

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।


यह सही है की घुटनों तक कीचड़ सना है .... भ्रष्टाचार का बोलबाला है । पर किसी न किसी को तो कीचड़ साफ़ करना ही पड़ेगा और वह हम ही क्यों न हो ....

Monday, April 20, 2009

आकाश

आकाश को देख रहा हूँ । कोई छोर नही दीखता । इतना फैला हुआ है ...... डर लग लगता है ।
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।

Friday, April 17, 2009

सपना

एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।

Thursday, April 16, 2009

कदम थिरक रहे है ...

कदम थिरक रहे है । रोको मत । थिरकने दो ।
यह नई दिशा देगा । दिमाग को लचीला बनाएगा ।
जीना सिखलाएगा । यही तो साँसों में दम भरेगा ।
....तो रोको मत । थिरकने दो ।

इरादा

ठान ले तो जर्रे जर्रे को थर्रा सकते है । कोई शक । बिल्कुल नही ।
अभी थोडी मस्ती में है । मौज कर रहे है ।
पर एक दिन ठानेगे जरुर ....

नशा

अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
देख लेगे तुम्हारी जिद या मेरा नशा ... किसमे कितना ताकत है ।
तुम्हारी जिद से मेरा सितारा डूबने वाला नही । हम दमकते साए है ।
असर तो जरुर छोड़ेगे ।

Wednesday, April 15, 2009

पारंपरिक पहनावा

कुछ भी हो जाय , हमें पारंपरिक पहनावे को जिन्दा रखना है । यही तो हमारी संस्कृति और तहजीब की निशानी है । पश्चिम की अंधी दौड़ में हम अपने विरासत से खिलवाड़ नही कर सकते । यही तो हमारी पहचान है ।ये हमें भारतीय होने का अहसास दिलाते है । । अगर हमने भारतीयता से मुंह मोड़ लिया तो हमारा आत्मसम्मान रसातल में होगा । तब हम न घर के रहेंगे और न घाट के ।

Monday, April 13, 2009

आजाद ख़याल

आज जरुरत है , आजाद ख़याल की । आजाद ख़याल तो कभी कभी ही आते है । पुराने भरे पड़े है । उन्ही में से आते रहते है । पर जब आजाद ख्याल आते है तो हलचल मचा देते है । कभी कभी ये ख्याल मन बहलाने के तरकीब ही नजर आते है । आजाद ख़याल तो आ जाते है फ़िर दब जाते है । हालात से समझौता कर लेते है । जब यही करना था तो आने का कोई मतलब नही रह जाता । आओ तो पुरी तरह से आओ , नही तो आओ ही मत ।

Friday, April 10, 2009

कंकड़

पानी में कंकड़ डालना अच्छा है । आनंद भी आता है ।
इन्तजार करने का बहाना भी है । ठीक है ...पर कभी कभी ही ।
पानी के लिए जगह ही न बचे । इतना मत डालना । ये ठीक नही ।

सादगी ही जीवन दर्शन है ....

सादगी केवल एक शब्द ही नही , जीवन दर्शन है । सच्चाई का दूसरा नाम । सुन्दरता का प्रतिक ।
इस जमाने में भी कभी कभी दिख जाती है । पर गुमशुम ही रहती है ।
क्या करे ? मजाक नही बनना चाहती ।
सभी की जिंदगी में बुरा समय आता है । आशा रखो ... अंततः जीत सच्चाई की ही होगी । देर भले हो जाय ।

सबेरा

नर्म सबेरा कभी रूह में शामिल था । अब पास भी नही फटकता । कहीं दूर ... चला गया ।
आज भी सबेरा निकलता है । रूप बदल कर । जिसे हम गर्म सबेरा कहते है ।
हमारी प्रकृति में इतना बदलाव ! हजम नही होता ।

सूखे पत्ते

सूखे पत्ते कहाँ गए ? कुछ ख़बर नही । बचपन में बकरियों को खिलाते थे । जिनपर कभी लेटा करते थे । बागों से जिन्हें चुना करते थे ।
अब कहाँ गए होंगे ? कुछ समझ नही आता । बेचारे !
क्या सूखे पत्तों की भाँती हम भी एक दिन सुख जायेगे ? क्या हमारा भी वही हाल होगा ? क्या तब हमें कोई याद करेगा ?
कुछ समझ नही आता ।

Thursday, April 9, 2009

नानी का गाँव

नानी का गाँव । जन्म भी ननिहाल में ही हुआ । पढ़ाई भी वही हुई । भैस भी चराई ।खूब मट्ठा भी पिया । मीठे की भेली चुराई । डंडें भी खाया । खूब दोस्त भी बनाए । सब के सब लफंगें। लफंगों की लिस्ट में नंबर वन भी आया । जिंदगी के सुनहले दिन ननिहाल में ही बीतें । आज फ़िर नानी का गाँव याद आया ।

बचपन का साथी

एक बछडा । उसे काफी प्यार करता था । हरदम उछल कूद मचाता । मेरा दोस्त बन गया । बस्ता फेंक उसी से बात करता । आँखें बड़ी प्यारी थी । जब उसे लगता की मै स्कुल से आ गया तो मेरी ही ओर एकटक देखता रहता ।मै भी उसे निराश नही करता , भागकर उसके पास चला जाता । एक दिन रात में अचानक चला गया । भगवान् ने उसे वापस बुला लिया ।ऐसा लगा... मेरी दुनिया उजड़ गई । बचपन का एक मूक साथी बिछड़ गया । जिंदगी के इस भाग दौड़ में वह हमेशा याद आता है ।
(दोस्त आज भी तुझे हर पल याद करता हूँ )

Wednesday, April 8, 2009

सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है

वो गंगा । अब नही दिखती । जिसकी आवाज में मधुरता थी । चेहरा देखने के लिए आईने की जरुरत नही थी । जो हमारी प्यास भी बुझाती थी । आज गंदे नाले में बदल गई । उसका कोई दोष नही । वो तो अपने हालत पर रो रही है । उस दिन को याद कर रही है, जब भगीरथ ने धरती पर अवतरित किया । याचना कर रही है ...अब भी छोड़ दो । उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही । सच कहूँ ... घोर कलयुग आ गया है ।

काश !

काश ! सभी भेड़ बकरियों की तरह ही निरीह होते । आपस में दौड़ नही होती । कोई किसी को नही मारता । कोई किसी को कुचलता नही । सोचो ! कितना अच्छा होता ।

दिल की प्यास

दिल की प्यास एक दिन जरुर बुझेगी ।
अभी सारा जग धुंआ धुंआ दीखता है ।
हर जगह कंकड़ और पथरीली राहें ही दिखती है ।
आज अन्धेरें का साम्राज्य छाया हुआ है ।
पर , एक दिन सारे जग में उजाला होगा ।
देखना है , अँधेरा कबतक रहता है ।
आस लम्बी है , हटा कर ही दम लेंगे ।

भरोसा

पार्क में देखा.... पति पत्नी एक दुसरे का हाथ पकड़कर चल रहे थे । डेली का उनका रूटीन था । जान पहचान वाले थे । एक दिन उनके घर जाने पर कारण पूछ ही लिया । पत्नी बोली ...साथी का हाथ पकड़ कर चलना भरोसे का प्रतिक और विश्वास का नाम है । यह हम दोनों को हमसफ़र होने की याद दिलाता है ।

Monday, April 6, 2009

आँखें

आँखें जब बात करती है, तो सब सुनते है । बोलता कोई नही । वहां शब्दों की जरुरत नही । उन आंखों में गजब का आकर्षण होता है । कहानी ख़ुद ब ख़ुद बयां हो जाती है ।

आईना देखो

आईना देखो । सच्चाई दिखेगी ।
झूठे ख्वाब टूट जायेगे ।
हकीकत सामने आ जायेगी ।
जिंदगी का मकसद मालूम हो जाएगा ।
सारी हसरतें पुरी हो जायेगी ।

खुला गगन सबके लिए है

उजाले को पी अपने को उर्जावान बना
भटके लोगो को सही रास्ता दीखा
उदास होकर तुझे जिंदगी को नही जीना
खुला गगन सबके लिए है , कभी मायूश न होना
तुम अच्छे हो, खुदा की इस बात को सदा याद रखना

स्वेत श्याम का आनंद

स्वेत श्याम का अपना महत्व है । अपना आनंद है । उसे भी पसंद करो । रंगीन के आगोश में आकर उसे भूल जाओ ...यह न्याय नही है । वहां तुम्हे सादगी मिलेगी । तुम्हारी यादों को ताजा करेगी । तब तुम अपनी जड़ों से जुड़ पाओगे ।
प्राकृतिक छटा के नजदीक जाओ । वहां खुशियाँ बिखरी मिलेगी । उन्हें समेट लो । अन्यत्र भटकने से कुछ हासिल नही होगा । जिंदगी का अन्तिम सत्य वही है । अब भी जान लो ।

जिंदगी एक दौड़ है

जिंदगी एक दौड़ है । दौड़ना है । अपने से ही जीतना है । अपने से ही हारना भी है । जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य तो यही है ,जिसे हम जान नही पाते ।

वक्त नही है ..

आज कल किसी के पास ज्यादा पढ़ने के लिए वक्त ही नही है । लंबे और बड़े लेख तो लोग देखते ही छोड़ देते है । कभी उन्हें काफी नुकशान भी उठाना पड़ता है । पर वे इसकी परवाह नही करते । कम शब्दों में भी बातें कही जा सकती है । सरल व सहज बातें असर भी करती है । कभी कभी तो वे दिलों दिमाग पर छा जाती है । सरल शब्दों के असर से तो मै नही बच पाया। आप पर भी कुछ न कुछ असर तो जरुर दिखेगा ।
नई डगर और नया सफर को पसंद करो । यहाँ किसी का अनुसरण नही करना है । अपने रास्ते ख़ुद बनाना है । अपनी लौ को बुझने मत दो । लड़ों तूफानों से .... एक दिन दुनिया बदल सकते हो ।

Sunday, April 5, 2009

प्यार

मेरी कामना है । सूरज की तपती धुप तुझ पर कभी न पड़े ।
तुम कही भी रहो । तुम्हारी जिंदगी चलती ही रहे ।
मै तो कुछ भी नही । मेरा साया भी तुझ पर न पड़े ।

जिंदगी की कहानी

पत्थर पर लेटी हुई गुडिया , जिंदगी की कहानी बयान करती है । हम कोमल समझते है । वो पत्थर को भी मात दे देती है । हम उसे फूलों की सेज समझ बैठते है । वो हमें दिन में ही तारें दिखला देती है ।

लज्जा और हया

लज्जा और हया शब्द तो म्यूजियम में रखने योग्य हो गए है । लोगो को दिखाया जायेगा ... ये कभी भारत के अनमोल धरोहर होते थे । लोग विश्वास नही करेगे और बहस शुरू हो जायेगी ।

खुशी

कुछ नया करो , जिसमे खुशी मिले । काम बहुत छोटा ही क्यों न हो । इश्वर है न , वह निर्णय लेगा । तो फ़िर लोगो की बातों पर क्यों जाते हो ?वो तुम्हे खुशी नही दे सकते ।

शाम ढल चुकी है

शाम ढल चुकी है । रात आएगी । खामोशी लाएगी । सपने ,सपनों में आकर हलचल मचायेगे । जिंदगी तार तार हो जाएगी ।

काली घटा

* काली घटा और सावन का कोई भरोशा नही । बरसे न बरसे ।
* पूरब की लालिमा और तन्हाई बड़ा कष्ट देती है ।
सूरज को निगल सकता हूँ ,शर्त है , कुछ मिले ।
तेज दौड़ सकता हूँ ,शर्त है ,कोई मंजिल तो दिखे ।

सरल

सरल व संछेप ही सफलता का राज है । इसी में पुरी दुनिया सिमटी हुई है । पुरा पन्ना जिसे नही समझा सकता उसे एक शब्द ही समझा देता है ।